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आज का चिंतन

ध्यान का प्रपंच और भोली -भाली जनता* *भाग-3*

विशेष : ये लेख माला 7 भागों में है ,जो वैदिक विद्वानों के लेख और विचारों पर आधारित है। जनहित में आपके सम्मुख प्रस्तुत करना मेरा उद्देश्य है , कृपया ज्ञानप्रसारण के लिए शेयर करें और अपने विचार बताए। डॉ डी के गर्ग योग का तीसरा अंग;आसन अष्टांग योग के पहले दो अंग यम और […]

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• “ईश्वर सर्वशक्तिमान् है” का वास्तविक तात्पर्य • •

गुण – ऊहापोह (सिद्धांत रक्षा – वाद-विवाद) • • ऊहा द्वारा सिद्धान्त को समझाने और उसकी रक्षा करने का चमत्कार ! • पंडित सत्यानन्द वेदवागीश घटना भारत के स्वतन्त्र होने से पूर्व की है। पेशावर-आर्यसमाज का वार्षिकोत्सव था। एक दिन रात्रि के अधिवेशन में पं० बुद्धदेव जी विद्यालंकार का ‘ईश्वर’ विषय पर व्याख्यान था। उस […]

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ओ३म् “वेदज्ञान और वेदानुकूल आचरण से ही मनुष्य धार्मिक बनता है”

=========== धार्मिक मनुष्य के विषय में समाज में अविद्या पर आधारित अनेक आस्थायें व असद्-विश्वास प्रचलित हैं। इन आस्थाओं पर विचार करते हैं तो इसमें सत्यता की कमी अनुभव होती है। सच्चा धार्मिक मनुष्य कौन होता है? इसका उत्तर यह मिलता है कि सच्चा धार्मिक वही मनुष्य हो सकता है जिसको वेदज्ञान उपलब्ध वा प्राप्त […]

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ध्यान का प्रपंच और भोली -भाली जनता* *भाग-१*

विशेष : ये लेख मला ५ भागों में है ,जो वैदिक विद्वानों के लेख और विचारों पर आधारित है। जनहित में आपके सम्मुख प्रस्तुत करने मेरा उद्देश्य है , इसलिए कृपया शेयर करे। डॉ डी के गर्ग पिछले कई वर्षोंसे मेरे पास अलग लग गुरुओं के शिष्य आ रहे है और उनके बाबा गुरु द्वारा […]

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परमात्मा के साथ अपनी सर्वमान्य संगति की चेतना को किस प्रकार बनाकर रखा जाये?

परमात्मा के ऊर्जा रूप की तुलना भिन्न-भिन्न वस्तुओं जीवों से किस प्रकार की जाती है? (2) परमात्मा के साथ अपनी सर्वमान्य संगति की चेतना को किस प्रकार बनाकर रखा जाये? दाधार क्षेममोको न रण्वो यवो न पक्वो जेता जनानाम। ऋषिर्न स्तुभ्वा विक्षु प्रशस्तो वाजी न प्रीतो वयो दधाति।। ऋग्वेद मन्त्र 1.66.2 (कुल मन्त्र 754) (दाधार) […]

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*पौराणिक पञ्चाङ्गों की अनुपालना में हम स्वयं भी पौराणिक ही हैं।*

प्रणाम आचार्य जी, आज के प्रचलित पंचांगों में सामान्यतः एवं संदिग्ध स्थिति में भी व्रत पर्व, त्योहारों का निर्धारण निर्णय सिंधु नामक ग्रंथ से किया जाता है। ऐसे में भ्रांत पंचांगों की निर्थकता कैसे सिद्ध किया जाये। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है जनसाधारण में सर्वप्रथम सौरमास, तत् अनुगत चांद्रमास, चांद्रमास के अमांत होने, तत् […]

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ओ३म् “अपनी जीवन यात्रा को इसके लक्ष्य पर पहुंचाने का प्रयत्न करना चाहिये”

============ संसार में मनुष्य वा इसकी आत्मा एक यात्री के समान हैं जो किसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए अपने वर्तमान जन्म व जीवन में यहां तक पहुंची हैं। मनुष्यों की अनेक श्रेणियां होती हैं। कुछ ज्ञानी व बुद्धिमान होते हैं। वह अपने सब काम सोच विचार कर तथा विद्वानों की सम्मति सहित ऋषियों व […]

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ओ३म् “अपनी जीवन यात्रा को इसके लक्ष्य पर पहुंचाने का प्रयत्न करना चाहिये”

============ संसार में मनुष्य वा इसकी आत्मा एक यात्री के समान हैं जो किसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए अपने वर्तमान जन्म व जीवन में यहां तक पहुंची हैं। मनुष्यों की अनेक श्रेणियां होती हैं। कुछ ज्ञानी व बुद्धिमान होते हैं। वह अपने सब काम सोच विचार कर तथा विद्वानों की सम्मति सहित ऋषियों व […]

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हमारी सर्वमान्य चेतना क्या होनी चाहिए?

परमात्मा के ऊर्जा रूप की तुलना भिन्न-भिन्न वस्तुओं जीवों से किस प्रकार की जाती है? (1) हमारी सर्वमान्य चेतना क्या होनी चाहिए? रयिर्नचित्रा सूरा न संदृगायुर्न प्राणो नित्यो न सूनुः। तक्वा न भूर्णिर्वना सिषक्ति पया न धेनुः शुचिर्विभावा।। ऋग्वेद मन्त्र 1.66.1 (कुल मन्त्र 753) (रयिः) सम्पदा (न) जैसे कि (चित्रा) अद्भुत, इच्छा करने योग्य (परमात्मा) […]

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ओ३म् ‘संसार में ईश्वर एक ही है और वह सबसे महान् है’

=========== हमारा यह संसार मनुष्यों वा जीवात्माओं के सुख के लिये बनाया गया है। अन्य जो प्राणी योनियां हैं उनके जीव अपने पूर्व जन्मों के कर्मों का भोग करते हैं। उन्हें भी सुख तथा दुःख दोनों होते हैं। मनुष्य जाति व इतर प्राणियों को उत्पन्न करने वाली सत्ता को हम ईश्वर के नाम से जानते […]

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