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आज का चिंतन

🌷ओ३म् का जाप सर्वश्रेष्ठ🌷

ओ३म् का जाप स्मरण शक्ति को तीव्र करता है,इसलिए वेदाध्ययन में मन्त्रों के आदि तथा अन्त में ओ३म् शब्द का प्रयोग किया जाता है। मनुस्मृति में आया है कि ब्रह्मचारी को मन्त्रों के आदि तथा अन्त में ओ३म् शब्द का उच्चारण करना चाहिए। क्योंकि आदि में ओ३म् शब्द का उच्चारण न करने से अध्ययन धीरे […]

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ओ३म् “क्या हमारा अगला जन्म मनुष्य योनि में होगा?”

=========== संसार में हम चेतन जीवात्माओं के अनेक योनियों में जन्मों को देखते हैं। मनुष्य जन्म में उत्पन्न दो जीवात्माओं की भी सुख व दुःख की अवस्थायें समान नहीं होती। मनुष्य योनि तथा पशु-पक्षी की सहस्रों जाति प्रजातियों में जीवात्मायें एक समान हैं जिनके सुख दुःख अलग-अलग हैं। इसका कोई तो कारण होगा? वैदिक धर्म […]

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अच्छी संगति अर्थात् सत्संग का क्या महत्त्व है?

हमारी सम्पदा किन लक्षणों को धारण करे? अच्छी संगति अर्थात् सत्संग का क्या महत्त्व है? नूष्ठिरं मरुतो वीरवन्तमृृतीषाहं रयिमस्मासु धत्त। सहस्त्रिणं शतिनं शूशुवांसं प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात््।। ऋग्वेद मन्त्र 1.64.15 (कुल मन्त्र 747) (नू) अब (स्थिरम्) स्थिर (मरुतः) प्राण, श्वास, श्वास का नियंत्रक (वीरवन्तम्) शक्तिशाली वीर (ऋतीषाहम्) विजय का दाता (रयिम्) सम्पदा (अस्मासु) हम में (धत्त) धारण […]

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यहाँ से असुरों को दूर कर दो,

“यह असुर अपने स्वार्थपूर्ण अभिप्रायों को इस प्रकार उच्च सिद्धान्तों में लपेटकर लोगों के सामने पेश करते हैं कि लोग इन्हें ‘देव’ समझने लगते हैं।” ये रूपाणि प्रतिमुञ्चमानाऽ असुराः सन्तः स्वधया चरन्ति। परापुरो निपुरो ये भरन्त्यग्निष्टाँल्लोकात् प्रणुदात्यस्मात्।। -यजुः० २।३० ऋषिः – वामदेवः। देवता – अग्निः। छन्दः – भुरिक पङ्क्तिः। विनय – हे जगदीश्वर ! यहाँ […]

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आप किस प्रकार के सुपुत्रों और सुपौत्रों की आशा करते हो? श्रेष्ठ पुत्र और सुपौत्र किस प्रकार प्राप्त करें?

आप किस प्रकार के सुपुत्रों और सुपौत्रों की आशा करते हो? श्रेष्ठ पुत्र और सुपौत्र किस प्रकार प्राप्त करें? चर्कृृत्यं मरुतः पृृत्सु दुष्टरं द्युमन्तं शुष्मं मघवत्सु धत्तन। धनस्पृृतमुक्थ्यं विश्वचर्षणिं तोकं पुष्येम तनयं शतं हिमाः ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.64.14 (कुल मन्त्र 746) (चर्कृृत्यम्) वीरता और साहस धारण करते हुए कार्यों को बनाये रखता है (मरुतः) प्राणों […]

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*पतंजलि योगदर्शन में ईश्वर व ओम् जप का महत्व-*

ईश्वरप्रणिधानाद्वा- योगदर्शन- 1.23 ईश्वर के प्रति दृढ़ विश्वास, प्रेम व समर्पण से समाधि शीघ्र लग जाती है। इसके लिए शब्द प्रमाण, अनुमान प्रमाण और ईश्वर द्वारा किए जा रहे बेजोड़ उपकारों का चिन्तन करते रहना आवश्यक है। तप:स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोग: (योगदर्शन 2.1) तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान क्रिया योग है।‌ ध्यानं निर्विषयं मन: (सांख्य दर्शन- 6.25) […]

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लोगों में सहनशक्ति कम होना, सबसे बड़ी समस्या

*”आजकल लोगों में सहनशक्ति बहुत कम हो गई है। इसीलिए छोटी-छोटी बात पर लोग आपस में झगड़ पड़ते हैं। यह अच्छा नहीं है।”* *”यदि आप अपने घर में परिवार में समाज में देश में सुख शांति से जीना चाहते हैं। तो इसके लिए एक दूसरे को समझना बहुत आवश्यक है।” “अपनी बात कहने में जल्दबाजी […]

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देवता किसे कहते हैं और देवता कितने प्रकार के होते हैं ?

प्र०- देवता किसे कहते है? उ०-देवो दानाद्वा, दीपनाद्वा द्योतनाद्वा , द्युस्थानो भवतीति वा । दान देने वाले देव कहाते हैं दीपन अर्थात विद्या रुपी प्रकाश करने वाले देव कहाते हैं । द्योतन अर्थात सत्योपदेश करने वाले देव कहाते हैं ।विद्वान भी विद्या आदि का दान करने से देव कहाते हैं विद्वानसो ही देवा । सब […]

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केवल युधिष्ठिर की विवाहिता पत्नी थी द्रौपदी

🌷🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷🌷 🌷द्रौपदी का केवल एक पति था-युधिष्ठिर🌷 विवाद क्यों पैदा हुआ था:- (१) अर्जुन ने द्रौपदी को स्वयंवर में जीता था।यदि उससे विवाह हो जाता तो कोई परेशानी न होती।वह तो स्वयंवर की घोषणा के अनुरुप ही होता। (२) परन्तु इस विवाह के लिए कुन्ती कतई तैयार नहीं थी। (३) अर्जुन ने भी इस विवाह […]

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ओ३म् ‘मृतक श्राद्ध का विचार वैदिक सिद्धान्त पुनर्जन्म के विरुद्ध है’

============= महाभारत युद्ध के बाद वेदों का अध्ययन-अध्यापन अवरुद्ध होने के कारण देश में अनेकानेक अन्धविश्वास एवं कुरीतियां उत्पन्न र्हुइं। सृष्टि के आरम्भ में सर्वव्यापक एवं सर्वातिसूक्ष्म व सर्वज्ञ ईश्वर से प्राप्त वैदिक सत्य सिद्धान्तों को विस्मृत कर दिया गया तथा अज्ञानतापूर्ण नई-नई परम्पराओं का आरम्भ हुआ। ऐसी ही एक परम्परा मृतक श्राद्ध की है। […]

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