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आज का चिंतन

संघर्ष और सफलता में क्या सम्बन्ध है?

परमात्मा मेहनत करने वाले और मननशील मनुष्यों का नियामन कैसे करता है? दिवश्चित्ते बृहतो जातवेदो वैश्वानर प्र रिरिचे महित्वम्। राजा कृष्टीनामसि मानुषीणां युधा देवेभ्यो वरिवश्चकर्थ ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.59.5 (कुल मन्त्र 687) (दिवः चित्त) सभी दिव्यताओं से भी (ते) आपकी (बृहतः) व्यापक, फैली हुई (जातवेदः) सभी को पैदा करने वाला और समस्त उत्पन्न को जानने […]

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भयहीन इबादत स्थल और भयग्रस्त सनातनी पूजा स्थल, योगी जी महाराज पर निर्भरता कब तक

दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक) योगी आदित्यनाथ जी महाराज जिन्होंने विगत कुछ वर्ष में यह प्रमाणित कर दिया है की सनातन के पथ पर चलकर धर्म और मानवता की रक्षा एवं दुर्जन रुपी दानवो का अंत कैसे किया जा सकता है । यदि इसके पश्चात भी कुछ नेता जो जातिगत वर्चस्व के चलते उत्तर प्रदेश […]

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परमात्मा मेहनत करने वाले और मननशील मनुष्यों का नियामन कैसे करता है?

संघर्ष और सफलता में क्या सम्बन्ध है? दिवश्चित्ते बृहतो जातवेदो वैश्वानर प्र रिरिचे महित्वम्। राजा कृष्टीनामसि मानुषीणां युधा देवेभ्यो वरिवश्चकर्थ ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.59.5 (कुल मन्त्र 687) (दिवः चित्त) सभी दिव्यताओं से भी (ते) आपकी (बृहतः) व्यापक, फैली हुई (जातवेदः) सभी को पैदा करने वाला और समस्त उत्पन्न को जानने वाला (वैश्वानर) सब प्राणियों का […]

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ओ३म् “आर्यसमाज का सार्वभौमिक कल्याणकारी लक्ष्य एवं उसकी पूर्ति में बाधायें”

============ आर्यसमाज का उद्देश्य संसार में ईश्वर प्रदत्त वेदों के ज्ञान का प्रचार व प्रसार है। यह इस कारण है कि संसार में वेद ज्ञान की भांति ऐसा कोई ज्ञान व शिक्षा नहीं है जो वेदों के समान मनुष्यों के लिए उपयोगी व कल्याणप्रद हो। वेद ईश्वर के सत्य ज्ञान का भण्डार हैं जिससे मनुष्यों […]

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किसी ने मुझसे पूछा- हिंदू धर्म का केंद्र कहां है?

॥ॐ॥ मैं- केंद्र मतलब? जैसे मक्का इस्लाम का केंद्र है, वैसे ही वेटिकन शहर ईसाई धर्म का केंद्र है। तो हिंदू धर्म का केंद्र कहां है, किस स्थान पर है? मैंने कहा “अतीत में जिसने भी भारत पर हमला किया, वह हिंदू धर्म का केंद्र खोजने में असफल रहा। ताकि वह उस केंद्र को नष्ट […]

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जन्म देने वाली माता, धरती माता तथा महान् विद्वानों में कौन सा लक्षण समान हैं?

जन्म देने वाली माता, धरती माता तथा महान् विद्वानों में कौन सा लक्षण समान हैं? परमात्मा के क्या लक्षण हैं? हम परमात्मा के लक्षणों की अनुभूति अपने भीतर कैसे कर सकते हैं? बृहती इव सूनवे रोदसी गिरः होता मनुष्यो३ न दक्षः। स्वर्वते सत्यशुष्माय पूर्वीर्वैश्वानराय नृतमाय यह्वीः।। ऋग्वेद मन्त्र 1.59.4 (कुल मन्त्र 686) (बृहती इव) जैसे […]

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ओ३म् “वैदिक जीवन और यौगिक जीवन परस्पर पर्याय हैं”

ईश्वर, जीव और प्रकृति नित्य, अनादि व अनुत्पन्न सत्तायें हैं। विगत अनादि काल से जीवात्मा अपने कर्मानुसार जन्म लेता व मृत्यु को प्राप्त होता आ रहा है। अनेक बार जीवात्मा का मोक्ष भी हुआ है और मोक्ष से पुनः लौटकर मनुष्य व कर्मानुसार प्रायः सभी इतर योनियों में जन्म लेता रहा है। जीव की जीवन […]

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परमात्मा सभी जीवों और पदार्थों का स्वामी तथा संरक्षक किस प्रकार है?

अपने अस्तित्व के अहंकार और परिस्थितियों में परिवर्तन के प्रभाव से कैसे ऊपर उठें? आ सूर्ये न रश्मयो ध्रुवासो वैश्वानरे दधिरेऽग्ना वसूनि। या पर्वतेष्वोषधीष्वप्सु या मानुषेष्वसि तस्य राजा ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.59.3 (कुल मन्त्र 685) (आ – रश्मयः तथा दधिरे से पूर्व लगाकर) (सूर्ये) सूर्य में (न) जैसे (रश्मयः – आ रश्मयः) सभी दिशाओं में […]

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वर्तमान में आर्य समाज के प्रचारार्थ कुछ सुझाव

१. शिक्षा का राष्ट्रीयकरण हो- २- शिक्षा का वैदिक पाठ्यु क्रम हो , ३- सम्पूर्ण राष्ट्र में देवनागरी लिपि हो- ४- प्रथम कक्षा से संस्कृत पठन-पाठन अनिवार्य हो- ५-राष्ट्रीय शिक्षा बोर्ड एक हो- ६- लड़के-लडकियों के स्कूल अलग-अलग हों, ७- चिकित्सा का राष्ट्रीयकरण हो ८- न्याय व्यवस्था निःशुल्क प्रदान की जाय – ९-जन्म-मृत्यु-शिक्षा-रोजगार पत्र से […]

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आत्मा शरीर में कहां रहती है, भाग – 6

ब्रहदारण्यकोपनिषद के आधार पर । आत्मा शरीर में कहां रहती है? इस उपनिषद में बहुत लंबा वृतांत आत्मा के निवास के विषय में दिया हुआ है लेकिन हम सुधीर पाठकों की सुविधा के लिए छोटे-छोटे भाग में तोड़ तोड़ कर प्रस्तुत करना उचित समझेंगे। पृष्ठ संख्या 829 बहुत महत्वपूर्ण बात लिखी गई है कृपया गंभीरता […]

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