१. शिक्षा का राष्ट्रीयकरण हो- २- शिक्षा का वैदिक पाठ्यु क्रम हो , ३- सम्पूर्ण राष्ट्र में देवनागरी लिपि हो- ४- प्रथम कक्षा से संस्कृत पठन-पाठन अनिवार्य हो- ५-राष्ट्रीय शिक्षा बोर्ड एक हो- ६- लड़के-लडकियों के स्कूल अलग-अलग हों, ७- चिकित्सा का राष्ट्रीयकरण हो ८- न्याय व्यवस्था निःशुल्क प्रदान की जाय – ९-जन्म-मृत्यु-शिक्षा-रोजगार पत्र से […]
Category: आज का चिंतन
ब्रहदारण्यकोपनिषद के आधार पर । आत्मा शरीर में कहां रहती है? इस उपनिषद में बहुत लंबा वृतांत आत्मा के निवास के विषय में दिया हुआ है लेकिन हम सुधीर पाठकों की सुविधा के लिए छोटे-छोटे भाग में तोड़ तोड़ कर प्रस्तुत करना उचित समझेंगे। पृष्ठ संख्या 829 बहुत महत्वपूर्ण बात लिखी गई है कृपया गंभीरता […]
अग्नि अर्थात् ऊर्जा क्या है? हम अग्नि, ऊर्जा, से क्या आशा करते हैं? अग्नि अर्थात् ऊर्जा की वृद्धि कैसे करें? अच्छिद्रा सूनो सहसो नो अद्य स्तोतृृभ्यो मित्रमहः शर्म यच्छ। अग्ने गृणन्तमंहस उरुष्योर्जो नपात्पूर्भिरायसीभिः ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.58.8 (कुल मंत्र ६८१) (अच्छिद्रा) दोष रहित (सूनो) पुत्र (सहसः) पूर्ण बल के लिए (नः) हमारी (अद्य) आज (स्तोतृृभ्यः) […]
🔥 ओ३म् 🔥 🚩 धर्म क्या है? 🚩
धर्म वह है जो मनुष्य मात्र का कल्याण करने में समर्थ हो, किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष का नहीं। धर्म वह है जो जीवन के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करे।बौद्धिक,आत्मिक,शारीरिक,सामाजिक,राष्ट्रीय उन्नति के लिए प्रेरणा दे;जिसमें समानता,एकता,परस्पर प्रेम,सौहार्द,सद्भावना,समदृष्टि उत्पन्न करने की क्षमता हो; जो कर्तव्य पालन के प्रति सचेत करे।ऐसे धर्म को धारण करके मनुष्य […]
स्वामी सत्यपति परिव्राजक एक वर्ग है, जो व्याख्यान देता रहता है उसका कभी टेप रिकार्ड सुनने को मिलता है। वह कहता है हमको क्लेश क्यों सताते हैं ? हमारे ऊपर काम-क्रोध आक्रमण क्यों करते है ? हमको ये दुःख क्यों सताते हैं ? वह कहता है ये इसलिए सताते हैं कि हम स्वयं को यह […]
============= संसार में मनुष्य पाप व पुण्य दोनों करते हैं। पुण्य कर्म सच्चे धार्मिक ज्ञानी व विवेकवान् लोग अधिक करते हैं तथा पाप कर्म छद्म धार्मिक, अज्ञानी, व्यस्नी, स्वार्थी, मूर्ख व ईश्वर के सत्यस्वरूप से अनभिज्ञ लोग अधिक करते हैं। इसका एक कारण यह है कि अज्ञानी लोगों को कोई भी बहका फुसला सकता है। […]
=========== सामान्य मनुष्य आज तक अपनी आत्मा के अन्तःकरण में विद्यमान एवं कार्यरत मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार उपकरणों को यथावत् रूप में नहीं जान पाया है। मनुष्य को मनुष्य उसमें मन नाम का एक करण होने के कारण कहते हैं जो संकल्प विकल्प व चिन्तन-मनन करता है। मनुष्य का मन आत्मा का करण है […]
सूचना -इस लेख का उद्देश्य किसी की धार्मिक आस्था और मान्यता को आहत करना नहीं है बल्कि सप्रमाण सत्य को प्रकट करना है , अतः निवेदन है कि प्रबुद्ध पाठक इस लेख को पूरा ध्यान से पढ़ें जगत में जितने भी जीवधारी हैं ,सबको अपनी जान प्यारी होती है .और सब अपने बच्चों का पालन […]
हमें दिव्य संगति कैसे प्राप्त हो सकती है? हमें दिव्य संगति क्यों प्राप्त करनी चाहिए? होतारं सप्त जुह््वो३ यजिष्ठं यं वाघतो वृृणते अध्वरेषु। अग्निं विश्वेषामरतिं वसूनां सपर्यामि प्रयसा यामि रत्नम््।। ऋग्वेद मन्त्र 1.58.7 (कुल मंत्र 680) (होतारम्) पदार्थों का लाने वाला और स्वीकार करने वाला (सप्त) सात (जुह््वः) ज्ञान की आहुतियाँ देता है (यजिष्ठम्) आह्वान […]
ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा क्या हैं?
ईसाई- पाप क्षमा करना मुस्लमान- जन्नत और हूरें प्रदान करना पौराणिक हिन्दू- अवतार लेकर दुःख दूर करना वैदिक धर्मी- पुरुषार्थ के लिए बुद्धि प्रदान करना प्रिय मित्रों ईश्वर हमारे ऊपर अनेक उपकार करते हैं। विभिन्न विभिन्न मत मतान्तर अपनी अपनी मान्यता के अनुसार ईश्वर की कृपा का होना मानते हैं। वैसे तो सत्कर्म करने के […]