ओ३म् ============ परमात्मा ने जीवात्मा के कर्मों के अनुसार अनेकानेक योनियां बनाई हैं। मनुष्य योनि सभी प्राणि योनियों में सर्वश्रेष्ठ है। यही एक योनि है जिसमें मनुष्य आत्मा की उन्नति कर ईश्वर को जान व उसका साक्षात्कार करके अपवर्ग वा मोक्ष को प्राप्त हो सकता है। मनुष्य के जन्म का कारण उसके पूर्वजन्म के कर्म […]
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ओ३म् ============ मनुष्य को परमात्मा ने बुद्धि दी है जिससे वह ज्ञान को प्राप्त होता है तथा सत्यासत्य का निर्णय करता है। मनुष्य को ज्ञान को प्राप्त करने जैसी बुद्धि प्राप्त है वैसी अन्य प्राणियों को नहीं है। अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य की विशेषता अपनी बुद्धि के कारण ही होती है। जो मनुष्य […]
ओ३म् =========== मनुष्य शरीर में आत्मा का सर्वोपरि महत्व है। शरीर को आत्मा का रथ कहा जाता है और यह है भी सत्य। जिस प्रकार हम रथ व वाहनों से अपने गन्तव्य स्थान पर पहुंचते हैं उसी प्रकार से मनुष्य शरीर मनुष्य की आत्मा को उसके लक्ष्य ईश्वर-प्राप्ति कराता है। ईश्वर सर्वव्यापक होने से आत्मा […]
ओ३म् ======== हम इस संसार में माता-पिता के द्वारा जन्म प्राप्त पर यहां आये हैं। यदि हमारे माता-पिता न होते तो हमारा जन्म नहीं हो सकता था। हमारे जन्म की जो प्रक्रिया है उसमें हमारे माता-पिता को अनके प्रकार के कष्ट उठाने तथा पुरुषार्थ करने पड़ते हैं। यह ऐसा कार्य है कि जो कोई किसी […]
ओ३म् ========== इस अनन्त संसार में हम अनन्त प्राणियों में से एक प्राणी है जिसका मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति करना है। ज्ञान यह प्राप्त करना है कि हम कौन हैं, कहां से आये हैं, कहां जाना हैं? हमारा अस्तित्व कब से है, यह अस्तित्व कब व कैसे अस्तित्व में आया, इसका भविष्य में क्या होगा? […]
ओ३म् =========== मनुष्य को मनुष्य का जन्म ज्ञान की प्राप्ति तथा उसके अनुसार आचरण करने के लिये मिला है। यदि मनुष्य सत्यज्ञान की प्राप्ति के लिये प्रयत्न नहीं करता तो उसका अज्ञान व अन्धविश्वासों में फंस जाना सम्भव होता है। अज्ञानी मनुष्य अपने जीवन में लौकिक एवं पारलौकिक उन्नति नहीं कर सकते। सत्यज्ञान को अप्राप्त […]
आर्य समाज एक क्रन्तिकारी आन्दोलन है जिसका मुख्य उद्देश्य समाज में फैले विभिन्न-प्रकार के पाखंड, मत-मतान्तर,जाति-पाती, अनेक-प्रकार के सम्प्रदायो ,मूर्ति-पूजा,आदि अन्धविश्वास को दूर करने वाला एक विश्वव्यापी आन्दोलन है इसके प्रवर्तक भगवतपात महर्षि देव दयानन्द सरस्वती है ! आर्यसमाज के बारे में भ्रान्तिया: 1 .आर्यसमाजी ईश्वर को नहीं मानते? उत्तर:- गलत। आर्य समाजी ही ईश्वरवादी […]
ओ३म् ============ मनुष्य का शरीर जड़ प्रकृति से बना होता है जिसमें एक सनातन, शाश्वत, अनादि, नित्य चेतन सत्ता जिसे आत्मा के नाम से जाना जाता है, निवास करती है। जीवात्मा को उसके पूर्वजन्मों के कर्मों का भोग कराने के लिये ही परमात्मा उसे जन्म व शरीर प्रदान करते हैं। शुभ व पुण्य कर्मों की […]
आइए जानें , जीवात्मा क्या है ?
जीवात्मा क्या है ?जो मनुष्य वेद शास्त्र पढने पर भी आत्मा को नहीं जानता है उन मनुष्यों की स्थिति स्वादिष्ट भोजन की पतीली में कड़छी की भॉति होती है जो स्वादिष्ट भोजन को रखती है परंतु उसे उसके स्वाद का पता नहीं होता | आत्मग्यान से रहित मनुष्य की भी यही अवस्थाएं होती हैं | […]
*केवल सांसारिक भोगों में ही जीवन का सर्वोच्च सुख नहीं है। वह तो आत्मा परमात्मा को जानने पर ही मिलता है।* संसार में लाखों योनियाँ हैं, जिनमें से केवल एक ही मनुष्य योनि विशेष सुविधाओं से युक्त है। शेष पशु पक्षी आदि योनियाँ तो प्रायः भोग योनियाँ हैं। उनमें कोई विशेष बुद्धि हाथ पैर कर्म […]