परमात्मा प्रशंसा के लायक क्यों है? हम प्रशंसाएँ कैसे अर्जित कर सकते हैं? परमात्मा की प्रशंसाओं की तुलना संतुष्टि जनक भोजन और सम्पदा के साथ क्यों की गई है? अस्मा इदु प्र तवसे तुराय प्रयो न हर्मि स्तोमं माहिनाय। ऋचीषमायाध्रिगव ओहमिन्द्राय ब्रह्माणि राततमा।। ऋग्वेद मन्त्र 1.61.1 (कुल मन्त्र 695) (अस्मै इत् उ) निश्चय से यह […]
Category: आज का चिंतन
🌷 वाणी का संयम 🌷
इयं या परमेष्ठिनी वाग्देवी ब्रह्मसंशिता । ययैव ससृजे घोरं तयैव शान्तिरस्तु न: ।। ―(अथर्व० १९/९/३) (इयम्) यह (या) जो (परमेष्ठिनी) सर्वोत्कृष्ट परमात्मा में ठहरने वाली (देवी) उत्तम गुण वाली (वाक्) वाणी (ब्रह्मसंशिता) वेदज्ञान से तीक्ष्ण की गई है और (यया) जिसके द्वारा (घोरम्) घोर पाप (ससृजे) उत्पन्न हुआ है (तया) उस वाणी के द्वारा (एव) […]
*🌷 पुनर्जन्म -विवेचन 🌷*
एक शरीर को त्याग कर दूसरा शरीर धारण करना ही पुनर्जन्म कहाता है। चाहे वह मनुष्य का शरीर हो या पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि कोई भी शरीर। यह आवागमन या पुनर्जन्म एक शाश्वत सत्य है। जो जैसे कर्म करता है,वह वैसा ही शरीर प्राप्त करता है।धनाढ़य, कंगाल, सुखी,दुःखी, ऊँच, नीच आदि अनेक प्रकार के […]
========== संसार में तीन सनातन, अनादि, अविनाशी, नित्य व अमर सत्तायें हैं। यह हैं ईश्वर, जीव और प्रकृति। अमृत उसे कहते हैं जिसकी मृत्यु न हो तथा जिसमें दुःख लेशमात्र न हो और आनन्द भरपूर हो। ईश्वर अजन्मा अर्थात् जन्म-मरण धर्म से रहित है। अतः ईश्वर मृत्यु के बन्धन से मुक्त होने के कारण अमृत […]
ईश्वर ऐसे मिलता है*
(कृष्णा रंजन – विभूति फीचर्स) जो जाना जा सकता है वह संसार है। जानने से जो छूट जाता है, वह सत्य है। जो पाया जा सकता है वह पदार्थ है। जो पाने से छूट जाता है, वह परमात्मा है, इसीलिये ईश्वर एक पहेली है। उसे खोजने वाला खोजते-खोजते स्वयं खो जाता है,तब वह मिलता है। […]
दूसरों की खुशी में खुश होना सीखिये*
(सत्यशील अग्रवाल-विभूति फीचर्स) समाज में यह सामान्य प्रथा प्रचलित है कि समाज में, परिवार में अथवा विश्व में मानव के दु:ख से हम विचलित होते हैं, दु:खी या पीड़ित जनों के लिए सहानुभूति रखते हैं और यथा सम्भव उनका दु:ख दूर करने का प्रयास करते हैं। यह बात अलग है कि जितना करीब का रिश्ता […]
इससे पूर्व की 15वीं किस्त में छांदोग्य उपनिषद में आत्मा के संबंध में क्या विवरण आता है उसकी प्रस्तुति की गई थी। पृष्ठ संख्या 835 पर बहुत ही सुंदर विवरण आता है। जीवात्मा को पुरुष क्यों कहते हैं? इसको निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है। ‘पुरुष’ शब्द दो शब्दों की संधि हो करके बना है। […]
भारतीय शिक्षा का सर्वनाश
अंग्रेजों के भारत आने से पूर्व योरूप के किसी भी देश में इतना शिक्षा का प्रचार नहीं था जितना कि भारत वर्ष में था। भारत विद्या का भण्डार था। सार्वजनिक शिक्षा की दृष्टि से भारत सब देशों का शिरोमणि था। उस समय असंख्य ब्राह्मण प्राचार्य अपने – अपने कुल में शिष्यों को शिक्षा देते थे। […]
============ मनुष्य का आत्मा चेतन सत्ता वा पदार्थ है। उसका कर्तव्य ज्ञान प्राप्ति व सद्कर्मों को करना है। ज्ञान ईश्वर व आत्मा संबंधी तथा संसार विषयक दो प्रकार का होता है। ईश्वर भी चेतन आत्मा की तरह से एक चेतन पदार्थ है जो सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वज्ञ, निराकार, सर्वव्यापक एवं सर्वान्तर्यामी सत्ता है। ईश्वर व आत्मा दोनों […]
============ आर्यसमाज का उद्देश्य संसार में ईश्वर प्रदत्त वेदों के ज्ञान का प्रचार व प्रसार है। यह इस कारण है कि संसार में वेद ज्ञान की भांति ऐसा कोई ज्ञान व शिक्षा नहीं है जो वेदों के समान मनुष्यों के लिए उपयोगी व कल्याणप्रद हो। वेद ईश्वर के सत्य ज्ञान का भण्डार हैं जिससे मनुष्यों […]