ओ३म् ========= मनुष्य का जो ज्ञान होता है वह सत्य व असत्य दो कोटि का होता है। मनुष्य के कर्म भी दो कोटि यथा सत्य व असत्य स्वरूप वाले हाते हैं। अनेक स्थितियों में मनुष्य को सत्य को अपनाने से क्षणिक व सामयिक हानि होती दीखती है और असत्य का आचरण करने से लाभ होता […]
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ओ३म् =========== मनुष्य जीवन को उत्तम व श्रेष्ठ बनाने के लिये आत्मा को ज्ञान से युक्त करने सहित श्रेष्ठ कर्मों व आचरणों का धारण व पालन करना होता है। मनुष्य जब संसार में आता है तो वह एक अबोध शिशु होता है। माता, पिता तथा परिवार के लोगों की बातें सुनकर वह बोलना सीखता है। […]
ओ३म् =========== संसार में तीन मूल सत्तायें हैं जिन्हें हम ईश्वर, जीव तथा प्रकृति के नाम से जानते हैं। आकाश का भी अस्तित्व है परन्तु यह एक चेतन व जड़ सत्ता नहीं है। आकाश खाली स्थान को कहते हैं जिसमें अन्य सभी सत्तायें आश्रय पाये हुए हैं। इसी प्रकार से संसार में दस दिशायें भी […]
ओ३म् ========== मनुष्य एक मननशील प्राणी है। सभी मनुष्यों को परमात्मा ने मानव शरीर बनाकर उसमें पांच ज्ञान इन्द्रियां, पांच कर्म इन्द्रियां तथा मन, बुद्धि, चित्त आदि अवयव दिये हैं। बुद्धि मनुष्य को ज्ञान प्राप्ति में सहायक होती है। बुद्धि से ही सत्य व असत्य का निर्णय किया जाता व अपने कर्तव्यों का ज्ञान प्राप्त […]
ओ३म् ========= हमारा यह संसार ईश्वर, जीव तथा प्रकृति, इन तीन सत्ताओं व पदार्थों से युक्त है। अनन्त आकाश का भी अस्तित्व है परन्तु यह कभी किसी विकार को प्राप्त न होने वाला तथा किसी प्रकार की क्रिया न करने वाला व इसमें क्रिया होकर कोई नया पदार्थ बनने वाला पदार्थ है। ईश्वर, जीव तथा […]
ओ३म् ============ संसार में स्थूल व सूक्ष्म दो प्रकार के पदार्थ होते हैं। स्थूल पदार्थों को सरलता से देखा जा सकता है। इसी से उनका प्रत्यक्ष भी हो जाता है। किसी पदार्थ का ज्ञान उसके गुणों को समग्रता से जानने पर होता है। सूक्ष्म पदार्थों नेत्रों से तो दिखाई नहीं देते परन्तु वह अपने लक्षणों […]
ओ३म् ============== मनुष्य चेतन एवं अल्पज्ञ सत्ता है। इसका शरीर जड़ पंच-भौतिक पदार्थों से परमात्मा द्वारा बनाया व प्रदान किया हुआ है। परमात्मा को ही मनुष्य शरीर व उसके सभी अवयव बनाने का ज्ञान है। उसी के विधान व नियमों के अन्तर्गत मनुष्य का जन्म होता तथा मनुष्य के शरीर में वृद्धि व ह्रास का […]
ओ३म् ========== हम मनुष्य कहलाते हैं। हमारी पहचान दो पैर वाले पशु के रूप में होती है। परमात्मा ने पशुओं को चार पैर वाला बनाया है। उन पशुओं से हम भिन्न प्राणी हैं। हमारे पास दो पैरों पर आसानी से खड़ा होने की सामर्थ्य होती है। हम दो पैरों से चल सकते हैं। हम अपने […]
क्या है जीवन में सुख का आधार?
एक बार एक महात्मा ने अपने शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल से प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बडे़ आलू साथ लेकर आयें, उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिये जिनसे वे ईर्ष्या, द्वेष आदि करते हैं । जो व्यक्ति जितने व्यक्तियों से घृणा करता हो, […]
सर्व धर्म समभाव क्या है ?
◘ स्व. राम स्वरूप —————————————————- “ईसाईयत और इस्लाम, सिद्धान्त और व्यवहार, दोनों में ही इस [सर्वधर्म-समभाव की] दृष्टि का तिरस्कार करते है। ये धर्म केवल यही नहीं मानते कि ये अन्य धर्मों से भिन्न है, ये यह भी आग्रह करते है कि ये श्रेष्ठतर है। अपने-अपने जन्मकाल से ही इन धर्मों का यह विश्वास रहा […]