-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। वेद सृष्टि के आदि ग्रन्थ होने सहित ज्ञान व विज्ञान से युक्त पुस्तक हैं। वेद जितना प्राचीन एवं सत्य मान्यताओं से युक्त अन्य कोई ग्रन्थ संसार में नहीं है। वेद से मनुष्य के जीवन के सभी पहलुओं पर प्रकाश पड़ता है और मार्गदर्शन प्राप्त होता है। वेदों के सत्यार्थ को जानकर […]
श्रेणी: आज का चिंतन
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून हमारा मनुष्य जन्म हमें क्यों मिला है? इसका उत्तर है कि हमने पूर्वजन्म में जो कर्म किये थे, उन कर्मों में जिन कर्मों का भोग हम मृत्यु के आ जाने के कारण नहीं कर सके थे, उन कर्मों का फल भोगने के लिये हमारा यह जन्म, जिसे पूर्वजन्म का पुनर्जन्म भी […]
आचार्या विमलेश बंसल आर्या किसी ने पूछा ये संसार क्या है? कैसे चल रहा है?? उत्तर – संसृति इति संसारः जो सरक रहा है वही संसार है। मजे की बात है प्रकृति से उत्पन्न जड़ धर्म होते हुए भी चल रहा है बदल रहा है। आखिर कैसे?? जब जड़ है तो, कौन शक्ति है? जो […]
मोक्ष सिद्धान्त मोक्ष की अवधि यह सिद्धान्त है कि जिसका आदि होता है, उसका अन्त भी अवश्य होता है और जो अनादि होता है, उसका अन्त कभी नहीं होता । जीव अनादि है, इसलिये उसका अन्त नहीं होता । काल जीव को सत्ता से नहीं मिटा सकता परन्तु काल के अन्तराल से जीव तीन […]
डॉ. जितेंद्र बजाज यह प्रश्न करना कि अपनी प्राचीन ज्ञान परंपरा पर हमें क्यों चर्चा करनी चाहिए, स्वयं में एक विलक्षण प्रश्न है। दुनिया में किसी भी देश में इस प्रकार का प्रश्न नहीं पूछा जाता। यूरोप में यदि आप किसी से पूछें कि ग्रीक और लैटिन पढऩा क्यों आवश्यक है, तो वह आप […]
आचार्य अलंकार शर्मा भारतीय विद्याओं का मूल स्रोत वेद हैं। वेद की शिक्षाओं पर आधारित पुराण, इतिहास और अन्यान्य साहित्य इसके अनुपूरक हैं। सामान्यतया वेद चार हैं, यह ज्ञान लोगों को है परंतु ये क्या हैं, कैसे हैं, उन्हें पढऩे के लिए कौन सी पुस्तक पढऩी चाहिए इस जानकारी का अभाव दिखता है। वैदिक […]
*दूसरे लोगों को उचित सम्मान दीजिए। और उनके वास्तविक प्रेम का लाभ लीजिए।* संसार में सब प्रकार के लोग हैं। आपसे कम योग्यता वाले, आपके समान योग्यता वाले और आपसे अधिक योग्यता वाले भी हैं। आपको इन सब के साथ व्यवहार करना पड़ता है। जो आपसे कम योग्यता वाले हैं, उनके साथ आप वैसा व्यवहार […]
–मनमोहन कुमार आर्य परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में वेदों का ज्ञान दिया था। इस ज्ञान को देने का उद्देश्य अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न व उसके बाद जन्म लेने वाले मनुष्यों की भाषा एवं ज्ञान की आवश्यकताओं को पूरा करना था। सृष्टि के आरम्भ से लेकर महाभारत काल पर्यन्त भारत वा आर्याव्रत सहित विश्व भर की भाषा संस्कृत ही थी जो कालान्तर में अपभ्रंस व भौगोलिक कारणों से अन्य भाषाओं में परिवर्तित होती रही और उसका परिवर्तित रूप ही लोगों में अधिक लोकप्रिय होता रहा। भारत में सृष्टि के आरम्भ से महाभारत काल के कुछ काल बाद तक जैमिनी ऋषि पर्यन्त ऋषि–परम्परा चलने से देश में संस्कृत का पठन पाठन व व्यवहार कम तो हुआ परन्तु काशी, मथुरा व देश के अनेक नगरों व ग्रामों में भी संस्कृत का व्यवहार व शिक्षण चलता रहा। तक्षशिला और नालन्दा आदि अनेक स्थानों में विश्वविद्यालय हुआ करते थे जहां प्रभूत हस्तलिखित ग्रन्थ हुआ करते थे जिन्हें विदेशी मुस्लिम आतताईयों ने जला कर नष्ट किया। इससे यह ज्ञात होता है कि भारत में संस्कृत का पठन–पाठन काशी, मथुरा, तक्षशिला एवं नालन्दा आदि अनेक स्थानों पर चलता रहा था। स्वामी शंकराचार्य जी दक्षिण भारत में उत्पन्न हुए। वह भी शास्त्रों के उच्च कोटि के विद्वान थे। आज भी उनका पूरे संसार में यश विद्यमान है। ऋषि दयानन्द के समय में भी काशी व मथुरा सहित देश के अनेक भागों में संस्कृत के अनेक विद्वान थे। वह शास्त्रीय सिद्धान्तों की दृष्टि से […]
सामान्यतया हमारी ऐसी धारणा है कि जब रामचंद्र जी इस धरती पर आए तो उनके शासनकाल को रामराज्य की उपाधि दी गई । जबकि ऐसा नहीं है । रामराज्य की परिकल्पना राम से भी पूर्व से चली आ रही है । वास्तव में जहां सत्य ,न्याय ,धर्म ,नीति और विधि के आधार पर शासन […]
-मनमोहन कुमार आर्य मनुष्य हो या इतर प्राणी, सभी जन्म व मरण के चक्र में फंसे हुए हैं। संसार में हम देखते हैं कि जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु अवश्य होती है। जन्म से पूर्व और मृत्यु के बाद का ज्ञान कुछ आध्यात्मिक व वैदिक विद्वानों को ही होता है। कुछ ऐसे मनुष्य हैं […]