प्रिय आत्मन ! प्रातः कालीन पावन बेला में समुचित सादर अभिवादन एवं शुभ आशीर्वाद। ईश्वर सर्वव्यापक है जब हम यह जानते हैं कि वह सर्वत्र व्याप्त है और केवल आत्मा साक्षी है। इसलिए कोई जगह , कोई कोना , कोई कण, कोई वस्तु ऐसी नहीं जिसमें ईश्वर न हो। तथा आत्मा साक्षी ना हो। इसका […]
Category: आज का चिंतन
दार्शनिक विचार आप किसी विदेशी द्वारा लिखी पुस्तक उठा कर देखिये। उसमें लिखा है कि विश्व का सबसे प्रथम व्यवसाय वेश्या वृति है। अचरज मत करे। आप इंटरनेट पर खोज करके देखे। सत्य आपके समक्ष आ जायेगा। पश्चिम की इस मान्यता का अनुसरण हमारे भारत के वामपन्थी आँख बंद कर करते हैं। पर कभी किसी […]
ओ३म् =========== संसार में अनेक मत-मतान्तर प्रचलित हैं। यह सब मत-मतान्तर ही हैं परन्तु इसमें धर्म वेदों से आविर्भूत सिद्धान्तों के पालन को ही कहते हैं। वेद क्या हैं? वेद ईश्वर से प्राप्त उस ज्ञान को कहते हैं जिसमें इस सृष्टि के प्रायः सभी रहस्यों जो मनुष्यों के जानने योग्य होते हैं तथा जिसे प्राप्त […]
प्रिय आत्मन । प्रातः कालीन सादर समुचित अभिवादन एवं शुभाशीष। ईश्वर अजन्मा है । ईश्वर का आदि अंत नहीं है। ईश्वर अंतर्यामी है । ईश्वर सभी काल में विद्यमान रहता है । इसलिए कहा जाता है कि हे ईश्वर तू ही तू है । तू ही माता है । तू ही पिता है। तू ही […]
समय के आगे बढ़ने के साथ मनुष्यों के ज्ञान के बढ़ने की बात आते ही हमें माण्डुक्य उपनिषद की याद आ जाती है। अथर्ववेद का ये उपनिषद आकार में सबसे छोटे उपनिषदों में गिना जाता है। इसके साथ ही ये उपनिषद सबसे अधिक विवादों की जड़ में रहा उपनिषद भी है। ये मुक्तिका के 108 […]
प्रातः काल की बेला सत्संग की गंगा है
प्रिय अत्मन! प्रातः काल की पावन बेला में सुप्रभातम। श्रद्धेय पिताश्री जीवन में ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाया करते थे। प्रातः काल में ईश्वर की उपासना ,भक्ति और प्रार्थना में भजन गाया करते थे। श्रद्धेय पिताश्री बताया करते थे कि जैसे सतयुग, त्रेता ,द्वापर और कलयुग चार युग हैं इसी प्रकार से एक दिन को […]
ओ३म् -आर्यसमाज धामावाला, देहरादून का रविवारीय सत्संग- ======== आज हमने प्रातः देहरादून की मुख्य आर्यसमाज धामावाला के साप्ताहिक सत्संग में भाग लिया। सत्संग का आयोजन प्रातः 8.30 बजे अग्निहोत्र यज्ञ से हुआ। आर्यसमाज के पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री जी ने यज्ञ सम्पन्न कराया। यज्ञ में अनेक सदस्यों सहित स्वामी श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम के बच्चों […]
ओ३म =========== आदि काल से महाभारत काल तक देश देशान्तर में ईश्वरीय ज्ञान वेदों का प्रचार था। वेद सृष्टि की आदि में ईश्वर द्वारा मनुष्यों को प्रेरित व प्राप्त ज्ञान है। वेद सब सत्य विद्याओं से युक्त हैं जिससे मनुष्य की सर्वांगीण उन्नति होती है। ईश्वर, जीवात्मा तथा सृष्टि की उत्पत्ति, सृष्टि उत्पत्ति के प्रयोजन, […]
ओ३म् =========== मनुष्य को यह ज्ञान नहीं होता है कि उसके लिये क्या आवश्यक एवं उचित है जिसे करके वह अपने जीवन को सुखी व दुःखों से रहित बना सके। मनुष्य जीवन के सभी पक्षों का ज्ञान हमें केवल वैदिक साहित्य का अध्ययन करने से ही होता है। वेद विद्या से युक्त तथा अविद्या से […]
ओ३म् ========= संसार में जानने योग्य यदि सबसे अधिक मूल्यवान कोई सत्ता व पदार्थ हैं तो वह ईश्वर व जीवात्मा हैं। ईश्वर के विषय में आज भी प्रायः समस्त धार्मिक जगत पूर्ण ज्ञान की स्थिति में नहीं है। सभी मतों में ईश्वर व जीवात्मा के सत्यस्वरूप को लेकर भ्रान्तियां हैं। कुछ मत ईश्वर को मनुष्यों […]