ओ३म् ============= आर्यसमाज एक सार्वभौमिक संगठन है जो संसार से धर्म व मनुष्य जीवन के क्षेत्र में सभी प्रकार की अविद्या को दूर करने के प्रयत्न करता है। आर्यसमाज की मुख्य विशेषता इसका ईश्वरीय ज्ञान वेदों पर आधारित होना है। आर्यसमाज के पास वेदों के सत्य अर्थों से युक्त ज्ञान प्राप्त है। आर्यसमाज के संस्थापक […]
Category: आज का चिंतन
धर्मविहीन राजनीति पतन का कारण है
🔥 ओ३म् 🔥 भूपेश आर्य प्राचीन काल में हमने देखा कि जितने भी धर्म का पालन करनेवाले राजा हुए, उनका राज्य काफी समय तक चला और सुदृढ़ता युक्त चला। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, योगीराज श्रीकृष्णजी, महाराज दशरथ, महाराज अश्वपति, राजा विक्रमादित्य, महाराज युधिष्ठिर आदि अनेक धार्मिक राजाओं ने अपने राज्य को धर्म की मर्यादा में रहकर […]
ओ३म् ============== संसार में किसी भी बात के दो पक्ष हो सकते हैं एक सत्य और दूसरा असत्य। अपने जीवन में हमें कई बार इन दोनों में से एक का चुनाव करना पड़ता है। कई बार असत्य कार्य करने पर हमें लाभ और सत्य को अपनाने पर हानि होती है। ऐसी स्थिति में अधिकांश लोग […]
ओ३म् ================ मनुष्य अपनी माता से इस संसार में जन्म लेता है। आरम्भ में शैशव अवस्था होती है। समय के साथ उसके शरीर व ज्ञान में वृद्धि होती है। वह माता की बोली को सुनकर उसे समझने लगता है व कुछ समय बाद बोलने भी लगता है। शैशव अवस्था बीतने पर किशोर व कुमार अवस्था […]
ओ३म् ================ मनुष्य इस संसार में भौतिक स्थूल पदार्थों, जो आकार वाले हैं, उन्हें ही अपनी आंखों से देख पाता है। सूक्ष्म भौतिक पदार्थ वायु, अग्नि, आकाश व गैस अवस्था में जल को भी हम इनके होते हुए भी नहीं देख पाते। अग्नि सभी पदार्थों में निहित व छिपी रहती है। बादलों में भी अग्नि […]
ओ३म् =============== मनुष्य का आत्मा अभौतिक पदार्थ है। आत्मा से इतर मनुष्य का शरीर भौतिक पदार्थों से बना होता है। मनुष्य शरीर को पांच भौतिक पदार्थों पृथिवी, अग्नि, वायु, जल एवं आकाश से बना होने के कारण पंचभौतिक शरीर कहते हैं। आत्मा पांच भूतों व पदार्थों से पृथक अनादि, नित्य तथा चेतन पदार्थ है। यह […]
ओ३म् =============== सूर्य, चन्द्र, पृथिवी तथा नक्षत्रों आदि से युक्त हमारी यह भौतिक सृष्टि मनुष्योत्पत्ति से बहुत पहले बन चुकी थी। अतः इसे मनुष्यों ने नहीं बनाया यह बात तो स्पष्ट है। मनुष्य एक, दो व करोड़ों मिलकर भी इस सृष्टि व इसके एक ग्रह को भी नहीं बना सकते। यदि ऐसा है तो फिर […]
वेदों में राष्ट्रभक्ति के मंत्र
वयं तुभ्यं बलिहृत: स्याम(अथर्ववेद 12/1/62) हम सब मातृभूमि के लिए बलिदान देने वाले हों। अधि श्रियो दधिरे पृश्निमातर: ( ऋ. 1/85/2)* पृथ्वी को माता मानने वाले देशभक्त सम्मान को अपने अधिकार में रखते है । उग्रा हि पृश्निमातर:( ऋ.1/23/10) (पृश्निमातर:) देशभक्त (हि) सचमुच (उग्रा:) तेजस्वी होते है। यस्मान्नानयत् परमस्ति भुतम् (अथर्ववेद 10/7/31) स्वराज्य से बढ़कर […]
ओ३म् ========== महाभारत के बाद वेदों की रक्षा एवं प्रचार के लिये उत्तरादायी लोगों के आलस्य प्रमाद के कारण वेद विलुप्त हो गये थे और देश व समाज में वैदिक ज्ञान के विपरीत अन्धविश्वास तथा सामाजिक कुरीतियां आदि प्रचलित हो गईं थी। इसी कारण हमारा पतन व देश की पराधीनता जैसे कार्य हुए। ऋषि दयानन्द […]
ओ३म् ======== देहरादून निवासी श्री कृष्ण कान्त वैदिक शास्त्री वरिष्ठ वैदिक विद्वान हैं। आपने स्कूल वक कालेज की शिक्षा प्राप्त की और उसके आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार में उच्च सरकारी पद संयुक्त कमिश्नर को सुशोभित किया। अपने सरकारी पद पर कार्य करते हुए उन्होंने संस्कृत व्याकरण का अध्ययन किया। सेवा निवृत्ति के बाद गुरुकुल […]