ओ३म् ============= वर्तमान समय में मनुष्य का उद्देश्य धन सम्पत्ति का अर्जन व उससे सुख व सुविधाओं का भोग बन गया है। इसी कारण से संसार में सर्वत्र पाप, भ्रष्टाचार, अन्याय, शोषण, अभाव, भूख, अकाल मृत्यु आदि देखने को मिलती हैं। इसके अतिरिक्त अविद्यायुक्त मत-मतान्तर अपने प्रसार की योजनायें बनाकर भारत जैसे देश की सत्ता […]
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ओ३म् =========== वेद संसार के सबसे पुराने ज्ञान व विज्ञान के ग्रन्थ है। वेदों का आविर्भाव सृष्टि के आरम्भ में इस सृष्टि रचयिता व पालक ईश्वर से हुआ है। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अनादि तथा नित्य सत्ता है। वह निर्विकार, अविनाशी तथा अनन्त है। सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान होने से वह पूर्ण ज्ञानवान […]
ओ३म् ============ ऋषि दयानन्द जी ने सत्यार्थप्रकाश के सप्तम समुल्लास के आरम्भ में ऋग्वेद के 4 और यजुर्वेद के एक मन्त्र को प्रस्तुत कर उनके अर्थों सहित ईश्वर के सत्यस्वरूप तथा गुण, कर्म व स्वभाव का प्रकाश किया है। इन मन्त्रों में तीसरा मन्त्र ऋग्वेद के दशवे मण्डल के सूक्त 48 का प्रथम मन्त्र है। […]
ओ३म् ========== ईश्वर एक सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान एवं सर्वज्ञ सत्ता है जबकि जीवात्मा एक एकदेशी, ससीम तथा अल्पज्ञ सत्ता है। अल्पज्ञ होने के कारण से जीवात्मा वा मनुष्य को अपने जीवन को सुखी बनाने एवं लक्ष्य प्राप्ति के लिये सद्ज्ञान एवं शारीरिक शक्तियों की आवश्यकता होती है। सत्यस्वरूप ईश्वर सर्वज्ञ है एवं वह पूर्ण ज्ञानी है। […]
ओ३म् ============ सभी मनुष्य सुख प्राप्ति की कामना करते हैं। इसके साथ ही जीवन में कभी दुःख प्राप्त न हों, इसके लिए भी सभी पुरुषार्थ कर धनसंचय आदि करते हैं। धनसंचय करने से मनुष्य सुखों के भौतिक साधनों को प्राप्त हो सकता है परन्तु अनेक ऐसे दुःख होते हैं जिनका निवारण धन से भी नहीं […]
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली विश्व की सबसे प्राचीन शिक्षा प्रणाली है। महाभारत के समय तक इसी प्रणाली से लोग विद्याध्ययन करते थे। इसी शिक्षा पद्धति का अनुसरण कर हमें ऋषि, मुनि, योगी, धर्म प्रचारक, विद्वान, आचार्य, उच्च कोटि के ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूरवीर आदि मिला करते थे। महाभारत युद्ध के कुछ वर्षों बाद वैदिक धर्म का […]
वैदिक धर्म के आधार ग्रन्थ वेदों में प्राचीन व सृष्टि के आरम्भ काल से जन्मना जाति का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। हमारी आर्य हिन्दूजाति के पास बाल्मीकि रामायण एवं महाभारत नाम के दो विशाल इतिहास ग्रन्थ हैं। रामायण की रचना महर्षि बाल्मीकि जी ने लाखों वर्ष पूर्व रामचन्द्र जी के जीवन काल में की थी। […]
ऋषि दयानन्द के आगमन से पूर्व विश्व में लोगों को वेदों तथा ईश्वर सहित आत्मा एवं प्रकृति के सत्यस्वरूप का स्पष्ट ज्ञान विदित नहीं था। वेदों, उपनिषद एवं दर्शन आदि ग्रन्थों से वेदों एवं ईश्वर का कुछ कुछ सत्यस्वरूप विदित होता था परन्तु इन ग्रन्थों के संस्कृत में होने और संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन उचित रीति […]
सरस्वती पूजा का वैदिक पक्ष क्या है ?
(दार्शनिक विचार) #डॉ_विवेक_आर्य देश भर में हिन्दू समाज “सरस्वती पूजन” के अवसर पर सरस्वती देवी की पूजा करता हैं। सरस्वती पूजा का वैदिक पक्ष इस अवसर पर पाठकों के स्वाध्याय हेतु प्रस्तुत है। विद्यालयों में सरस्वती गान किया जाता है। सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में सरस्वती की परिभाषा करते हुए स्वामी दयानंद लिखते है […]
ओ३म् ============ मनुष्य जब संसार में आता हैं और उसकी आंखे खुलती हैं तो वह अपने सामने सूर्य के प्रकाश, सृष्टि तथा अपने माता, पिता आदि संबंधियों को देखता है। बालक अबोध होता है अतः वह इस सृष्टि के रहस्यों को समझ नहीं पाता। धीरे धीरे उसके शरीर, बुद्धि व ज्ञान का विकास होता है […]