आजकल यह देखा जाता है, कि लोग एक दूसरे को सुझाव या सलाह देने को तैयार रहते हैं। “उन्हें चाहे उस विषय का ज्ञान हो, या न हो, चाहे उन्हें सुझाव देने का अधिकार हो, या न हो, फिर भी सुझाव देने के लिए बहुत उत्सुक रहते हैं। दिन भर दूसरों को सलाह देते ही […]
Category: आज का चिंतन
============ परमात्मा ने मनुष्य को सबसे मूल्यवान् वस्तु उसके शरीर में बुद्धि के रूप में दी है। बुद्धि से हम ज्ञान को प्राप्त कर उसके अनुसार आचरण करते है। जिस मनुष्य की बुद्धि जितनी विकसित व शुद्ध होती है, वह उतना ही अधिक ज्ञानी कहा जाता है। सत्य ज्ञान के अनुरूप आचरण करना ही मनुष्य […]
आत्मा को जानना बड़ा कठिन है
जिस वस्तु को जानना सरल हो, उसे स्थूल कहते हैं। अर्थात जो वस्तु जल्दी समझ में आ जाए, उसका ज्ञान ‘स्थूल ज्ञान’ कहलाता है। “संसार की वस्तुओं का ज्ञान हमें आंखों से तथा अन्य इंद्रियों से शीघ्र प्राप्त हो जाता है, और बहुत स्पष्ट भी होता है। इसका अर्थ यह मानना चाहिए कि संसार स्थूल […]
ज्ञान के चार प्रकार
कुल मिलाकर चार प्रकार का ज्ञान होता है। मिथ्या ज्ञान, संशयात्मक ज्ञान, शाब्दिक ज्ञान, और तत्त्वज्ञान। 1- मिथ्या ज्ञान उसे कहते हैं, जब वस्तु कुछ और हो और व्यक्ति उसे समझता कुछ और हो। जैसे रस्सी को सांप समझना। यह मिथ्या ज्ञान है। 2- संशयात्मक ज्ञान उसे कहते हैं, जब वस्तु समझ में ही नहीं […]
मानव जीवन को सफल बनाने के लिए सर्वप्रथम मनुष्य के अंदर उच्च प्रकार की आस्तिकता उसके हृदय में ईश्वर के प्रति भरी हुई होनी चाहिए। आस्तिकता को अपने अंदर भरने के लिए मनुष्य ईश्वर को परिछिन्न अर्थात एक- देसी अथवा किसी एक स्थान पर रहने वाला न मानकर उसको विभु अर्थात सर्वत्र विद्यमान रहने वाला […]
प्रतिभा एवं संकल्पशक्ति का उभार*
(पं. लीलापत शर्मा – विनायक फीचर्स) प्रतिभावान होने का अर्थ है- विनम्र, साहसी एवं संकल्पवान बनना। इसके अभाव में मनुष्य महानता के उच्च सोपनों को प्राप्त नहीं कर सकता। सेंट आगस्टाइन का कहना है कि यदि आप प्रगति करना चाहते हैं, प्रतिभाशालियों की श्रेणी में अपने को खड़ा देखना चाहते हैं तो सर्वप्रथम जीवन व्यवहार […]
सायणाचार्य का वेदार्थ◼️
✍🏻 लेखक – पदवाक्यप्रमाणज्ञ पण्डित ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’ सायणाचार्य से पूर्व उपलब्ध होनेवाले स्कन्द, दुर्ग आदि के वेदभाष्यों तथा सायणाचार्य के भाष्य में बहुत अधिक भेद नहीं, किन्तु सायण से पूर्ववर्ती भाष्यकारों तक वेदार्थ की विविध (आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधियज्ञ) प्रक्रिया पर्याप्त मात्रा में रही। याज्ञिक प्रक्रिया का शुद्ध स्वरूप बना रहता, तब […]
परमात्मा की अनुभूति कैसे करें?
परमात्मा की अनुभूति क्यों करें? प्रसन्नता की मूल वर्षा करने वाला कौन है? अपने जीवन में किसी भी महान् व्यक्तित्व का अनुसरण कैसे करें? अस्मा इदु त्यमुपमं स्वर्षां भराम्याङ््गूषमास्येन। मंहिष्ठमच्छोक्तिभिर्मतीनां सुवृक्तिभिः सूरिं वावृधध्यै।। ऋग्वेद मन्त्र 1.61.3 (कुल मन्त्र 697) (अस्मै इत् उ) निश्चय से यह उसके लिए है (परमात्मा के लिए) (त्यम) उस (उपमम) निकटता […]
हम परमात्मा की महिमा का गान क्यों करते हैं? हमारा प्राचीन संरक्षक कौन है?हमें शारीरिक और मानसिक रूप से कौन शुद्ध करता है? भगवान के साथ हमारा सम्बन्ध बार-बार भोजन करने के समान किस प्रकार है? अस्मा इदु प्रयइव प्र यंसि भराम्याङ््गूषं बाधे सुवृक्ति।इन्द्राय हृदा मनसा मनीषा प्रत्नाय पत्ये धियो मर्जयन्त ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.61.2 […]
वेद और ऋषि दयानन्द
पं० मदनमोहन विद्यासागर [जब हम ‘वेद’ को भूलकर अपने को भुला चुके थे तब ऋषिवर दयानन्द ने लुप्त ज्ञान भंडार ‘वेद’ पुनः संसार को दिया, इसके लिए मानव-जाति सदा ऋषि की ऋणी रहेगी। इस लेख के लेखक पं० मदनमोहन विद्यासागर जी ने ऋषि दयानन्द जी के मत से वेद की महत्ता का वर्णन किया है, […]