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आज का चिंतन

आंख-मूसली, ओखल-काम, देते ये संकेत ललाम

” वेदमाता गुरु गम्भीर मन्त्र श्रृंखाओं के साथ-साथ यदाकदा हल्की-फुल्की फुहारें भी छोड़ देती हैं, जिसे सुनकर मन हास्य विनोद में लोटपोट हो ही जाता है, किन्तु उसका अर्थ हितोपदेश से भरपूर होता है। अथर्ववेद काण्ड-११, सूक्त-३, मन्त्र संख्या-३ पर दृष्टिपात कीजिये। “चक्षुर्मुसल काम उलूखलम्” अर्थात् आंखें मूसल हैं तो कामनाएं ओखली है। काव्यतीर्थ पं० […]

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ओ३म् “ऋषि दयानन्द जी का गुरु विरजानन्द से विद्या प्राप्ति का उद्देश्य व उसका परिणाम”

============= ऋषि दयानन्द ने सच्चे शिव वा ईश्वर को जानने के लिए अपने पितृ गृह का त्याग किया था। इसके बाद वह धर्म ज्ञानियों व योगियों की तलाश कर उनसे ईश्वर के सत्यस्वरूप व उसकी प्राप्ति के उपाय जानने में तत्पर हुए थे। देश के अनेक स्थानों पर वह इस उद्देश्य की पूर्ति में गये […]

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सलाह या सुझाव देने का अधिकार किसको है ?

सलाह देना या सुझाव देना परोपकार का कार्य है। यह भी एक प्रकार की समाज सेवा है। “परन्तु सलाह या सुझाव देने का अधिकार सबको नहीं है।” किसी को सुझाव देने का अर्थ होता है, “उसकी बुद्धि को अपनी बुद्धि से कम समझना, और अपनी बुद्धि को उसकी बुद्धि से अधिक समझना।” जब व्यक्ति ऐसा […]

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हमारी आत्मा किस प्रकार मन की वृत्तियों का नाश करने के योग्य हो सकती है?

आध्यात्मिक मार्ग पर शुद्ध भोजन का क्या महत्त्व है? अस्येदु मातुः सवनेषु सद्यो महः पितुं पपिवांचार्वन्ना। मुषायद्विष्णुः पचतं सहीयान्विध्यद्वराहं तिरो अद्रि मस्ता ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.61.7 (कुल मन्त्र 701) (अस्य इत् उ) निश्चय से यह उसके लिए है (परमात्मा के लिए) (मातुः) निर्माता के लिए (सवनेषु) निर्माण करने के लिए (उसके प्रकाश को गहरे हृदय […]

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ओ३म् “मनुष्य धर्मानुसार तथा सत्य असत्य को विचार कर ही आचरण करें”

============ परमात्मा ने मनुष्य को सबसे मूल्यवान् वस्तु उसके शरीर में बुद्धि के रूप में दी है। बुद्धि से हम ज्ञान को प्राप्त कर उसके अनुसार आचरण करते है। जिस मनुष्य की बुद्धि जितनी विकसित व शुद्ध होती है, वह उतना ही अधिक ज्ञानी कहा जाता है। सत्य ज्ञान के अनुरूप आचरण करना ही मनुष्य […]

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ईश्वर की आज्ञा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता है।

प्रियांशु सेठ जैसे मनुष्य-शरीर में आत्मा काम करता है,इसी प्रकार सारे जगत् को परमात्मा चलाता है। यदि सूर्य को किसी तरह बोलने की शक्ति मिल जाये,तो उसे कहता सुनेंगे– “हे धरती पर विचरनेवालो! मुझे जाज्वल्यमान और चमकता हुआ देखकर भ्रम में न उलझ जाना।यह चमक मेरी नहीं है,उसकी है जो मेरे भीतर-बाहर विराजमान है।मेरी चमक […]

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बिना मांगे दूसरों को सलाह ना दें

आजकल यह देखा जाता है, कि लोग एक दूसरे को सुझाव या सलाह देने को तैयार रहते हैं। “उन्हें चाहे उस विषय का ज्ञान हो, या न हो, चाहे उन्हें सुझाव देने का अधिकार हो, या न हो, फिर भी सुझाव देने के लिए बहुत उत्सुक रहते हैं। दिन भर दूसरों को सलाह देते ही […]

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ओ३म् “मनुष्य धर्मानुसार तथा सत्य असत्य को विचार कर ही आचरण करें”

============ परमात्मा ने मनुष्य को सबसे मूल्यवान् वस्तु उसके शरीर में बुद्धि के रूप में दी है। बुद्धि से हम ज्ञान को प्राप्त कर उसके अनुसार आचरण करते है। जिस मनुष्य की बुद्धि जितनी विकसित व शुद्ध होती है, वह उतना ही अधिक ज्ञानी कहा जाता है। सत्य ज्ञान के अनुरूप आचरण करना ही मनुष्य […]

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आत्मा को जानना बड़ा कठिन है

जिस वस्तु को जानना सरल हो, उसे स्थूल कहते हैं। अर्थात जो वस्तु जल्दी समझ में आ जाए, उसका ज्ञान ‘स्थूल ज्ञान’ कहलाता है। “संसार की वस्तुओं का ज्ञान हमें आंखों से तथा अन्य इंद्रियों से शीघ्र प्राप्त हो जाता है, और बहुत स्पष्ट भी होता है। इसका अर्थ यह मानना चाहिए कि संसार स्थूल […]

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ज्ञान के चार प्रकार

कुल मिलाकर चार प्रकार का ज्ञान होता है। मिथ्या ज्ञान, संशयात्मक ज्ञान, शाब्दिक ज्ञान, और तत्त्वज्ञान। 1- मिथ्या ज्ञान उसे कहते हैं, जब वस्तु कुछ और हो और व्यक्ति उसे समझता कुछ और हो। जैसे रस्सी को सांप समझना। यह मिथ्या ज्ञान है। 2- संशयात्मक ज्ञान उसे कहते हैं, जब वस्तु समझ में ही नहीं […]

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