परमात्मा के ऊर्जा रूप की तुलना भिन्न-भिन्न वस्तुओं जीवों से किस प्रकार की जाती है? (2) परमात्मा के साथ अपनी सर्वमान्य संगति की चेतना को किस प्रकार बनाकर रखा जाये? दाधार क्षेममोको न रण्वो यवो न पक्वो जेता जनानाम। ऋषिर्न स्तुभ्वा विक्षु प्रशस्तो वाजी न प्रीतो वयो दधाति।। ऋग्वेद मन्त्र 1.66.2 (कुल मन्त्र 754) (दाधार) […]
श्रेणी: आज का चिंतन
प्रणाम आचार्य जी, आज के प्रचलित पंचांगों में सामान्यतः एवं संदिग्ध स्थिति में भी व्रत पर्व, त्योहारों का निर्धारण निर्णय सिंधु नामक ग्रंथ से किया जाता है। ऐसे में भ्रांत पंचांगों की निर्थकता कैसे सिद्ध किया जाये। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है जनसाधारण में सर्वप्रथम सौरमास, तत् अनुगत चांद्रमास, चांद्रमास के अमांत होने, तत् […]
============ संसार में मनुष्य वा इसकी आत्मा एक यात्री के समान हैं जो किसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए अपने वर्तमान जन्म व जीवन में यहां तक पहुंची हैं। मनुष्यों की अनेक श्रेणियां होती हैं। कुछ ज्ञानी व बुद्धिमान होते हैं। वह अपने सब काम सोच विचार कर तथा विद्वानों की सम्मति सहित ऋषियों व […]
============ संसार में मनुष्य वा इसकी आत्मा एक यात्री के समान हैं जो किसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए अपने वर्तमान जन्म व जीवन में यहां तक पहुंची हैं। मनुष्यों की अनेक श्रेणियां होती हैं। कुछ ज्ञानी व बुद्धिमान होते हैं। वह अपने सब काम सोच विचार कर तथा विद्वानों की सम्मति सहित ऋषियों व […]
परमात्मा के ऊर्जा रूप की तुलना भिन्न-भिन्न वस्तुओं जीवों से किस प्रकार की जाती है? (1) हमारी सर्वमान्य चेतना क्या होनी चाहिए? रयिर्नचित्रा सूरा न संदृगायुर्न प्राणो नित्यो न सूनुः। तक्वा न भूर्णिर्वना सिषक्ति पया न धेनुः शुचिर्विभावा।। ऋग्वेद मन्त्र 1.66.1 (कुल मन्त्र 753) (रयिः) सम्पदा (न) जैसे कि (चित्रा) अद्भुत, इच्छा करने योग्य (परमात्मा) […]
=========== हमारा यह संसार मनुष्यों वा जीवात्माओं के सुख के लिये बनाया गया है। अन्य जो प्राणी योनियां हैं उनके जीव अपने पूर्व जन्मों के कर्मों का भोग करते हैं। उन्हें भी सुख तथा दुःख दोनों होते हैं। मनुष्य जाति व इतर प्राणियों को उत्पन्न करने वाली सत्ता को हम ईश्वर के नाम से जानते […]
============ परमात्मा ने हमें मनुष्य जीवन दिया है। हमारा सौभाग्य है कि हम भारत में जन्में हैं जो सृष्टि के आरम्भ से वेद, ऋषियों व देवों की भूमि रही है। मानव सभ्यता का आरम्भ इस देवभूमि आर्यावर्त वा भारत से ही हुआ था। मनुष्य जीवन की उन्नति व कल्याण के लिए परमात्मा ने सृष्टि के […]
उस व्यक्ति के कैसे लक्षण होते हैं जो परमात्मा की अनुभूति करना चाहता है और उसके लिए सक्षम है? जीवन में दिव्यताओं को कैसे प्राप्त करें? जामिः सिन्धूनां भ्रातेव स्तस्त्रामिभ्यान्न राजा वनान्यत्ति। यद्वातजूतो वना व्यस्थादग्निर्ह दाति रोमा पृृथिव्याः ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.65.4 (कुल मन्त्र 751) (जामिः) भाई (सिन्धूनाम्) समुद्रों और नदियों का (भ्राता इव) भाई […]
ओ३म् का जाप स्मरण शक्ति को तीव्र करता है,इसलिए वेदाध्ययन में मन्त्रों के आदि तथा अन्त में ओ३म् शब्द का प्रयोग किया जाता है। मनुस्मृति में आया है कि ब्रह्मचारी को मन्त्रों के आदि तथा अन्त में ओ३म् शब्द का उच्चारण करना चाहिए। क्योंकि आदि में ओ३म् शब्द का उच्चारण न करने से अध्ययन धीरे […]
=========== संसार में हम चेतन जीवात्माओं के अनेक योनियों में जन्मों को देखते हैं। मनुष्य जन्म में उत्पन्न दो जीवात्माओं की भी सुख व दुःख की अवस्थायें समान नहीं होती। मनुष्य योनि तथा पशु-पक्षी की सहस्रों जाति प्रजातियों में जीवात्मायें एक समान हैं जिनके सुख दुःख अलग-अलग हैं। इसका कोई तो कारण होगा? वैदिक धर्म […]