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भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास

पानीपत का तृतीय युद्ध

भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भाग …. (अध्याय – 16) पा नीपत भारतीय इतिहास का एक प्रमुख स्थल है। जिसने कई बार भारतीय इतिहास को परिवर्तन की दिशा देने का काम किया है। यह अलग बात है कि परिवर्तन सदा हमारे अनुकूल ना रहा हो, लेकिन परिवर्तन तो परिवर्तन है। पानीपत का […]

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भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास

उत्तरकालीन पेशवा

भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास …. (हिन्दवी स्वराज के संस्थापक शिवाजी और उनके उत्तराधिकारी पुस्तक से .. अध्याय-14) पेशवा नारायणराव माधवराव प्रथम के पश्चात मराठा साम्राज्य दुर्बल होने लगा, क्योंकि उसके पश्चात इस साम्राज्य की संरक्षा व सुरक्षा के लिए कोई मजबूत इच्छाशक्ति वाला पेशवा इस साम्राज्य को नहीं मिला। माधवराव की […]

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भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भाग – 414

(हिन्दी स्वराज के संस्थापक शिवाजी और उनके उत्तराधिकारी पुस्तक से..) महान पेशवा बाजीराव प्रथम – अध्याय 12 जैसा कि हम पूर्व अध्याय में ही स्पष्ट कर चुके हैं कि बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र बाजीराव प्रथम को मराठा साम्राज्य का अगला वंशानुगत पेशवा बनाया गया। बाजीराव प्रथम अपने उत्कृष्ट सैनिक गुणों, नेतृत्व […]

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भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भाग – 413

हिंदवी स्वराज के संस्थापक शिवाजी और उनके उत्तराधिकारी पुस्तक से .. महान पेशवा बालाजी विश्वनाथ – अध्याय 11 मराठा शासनकाल में प्रधानमंत्री को ही पेशवा कहा जाता था। राजा की अष्टप्रधान परामर्शदात्री परिषद में इसका स्थान सबसे प्रमुख होता था। इसलिए बराबर वालों में प्रथम या प्रधान होने के कारण यह पद प्रधानमंत्री का पद […]

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इतिहास के पन्नों से भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास

भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भाग – 412

(हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक शिवाजी और उसके उत्ताधिकारी पुस्तक से ..) शिवाजी द्वितीय और महारानी ताराबाई – इससे पहले कि हम इस अध्याय के बारे में कुछ लिखें मैथिली शरण गुप्त की इन पंक्तियों रसास्वादन लेना उचित होगा- ‘हाँ! वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है। ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है? […]

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