स्वाध्याय बहुत ही मूल्यवान है। समाज में सामान्यत: स्वाध्याय का अर्थ अच्छी पुस्तकों को पढऩा माना जाता है। किन्तु स्वाध्याय केवल अच्छी पुस्तकों का अध्ययन मात्र ही नहीं है। स्व+अध्याय=अपने आप का अध्ययन=अपने आपको पढऩा, समझना। अपने विषय में ही यह जानना कि मैं क्या हूँ, कौन हँ, कहाँ से आया हूँ, कहाँ जा रहा […]
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कृष्ण कान्त वैदिक शास्त्री सु$आङ् अधिपूर्वक इड्-अध्ययने धातु से स्वाध्याय शब्द बनता है। स्वाध्याय शब्द में सु, आ और अधि तीन उपसर्ग हैं। ‘सु’ का अर्थ है उत्तम रीति से ‘आ’ का अर्थ है आद्योपान्त और ‘अधि’ का अर्थ है अधिकृत रूप से। किसी ग्रन्थ का आरम्भ से अन्त तक अधिकारपूर्वक सर्वत: प्रवेश स्वाध्याय कहलाता […]
मनमोहन सिंह आर्य मनुष्य की आत्मा के अल्पज्ञ होने के कारण इसके साथ अविद्या अनादि काल से जुड़ी हुई है। इसका एक कारण जीवात्मा का एकदेशी, ससीम, राग-द्वेष व जन्म-मरणधर्मा आदि होना भी है। ईश्वर सर्वव्यापक, निराकार, सर्वान्तर्यामी एवं सर्वज्ञ है। सर्वज्ञ का तात्पर्य है कि वह जानने योग्य सब कुछ जानता है। वह जीवों […]
शिक्षा व्यवस्था में हैं खामियां डा. ब्रह्मदेव गतांक से आगे।…अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप पांच यम और शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्र्रणिधान रूप पांच नियम ये दोनों मनुष्यों के इंद्रियघोड़ों में लगाम का कार्य करते हैं। आधुनिक शिक्षा पद्धति में इनका कोई नाम लेने वाला भी नहीं है। अतः मानव बेलगाम घोड़ों के […]