जब विद्यार्थी विद्याग्रहण कर जीवन को उन्नत बनाने के दृष्टिकोण से गुरूकुल में प्रविष्ट होता था तो वह समित्पाणि (हाथों में समिधायें लेकर) होकर ही गुरू के पास पहुंचता था। समित्पाणि होकर आने का विशेष महत्व होता था। इसका अभिप्राय था कि जैसे समिधाओं में अग्नि है, पर वह दिखता नही है, उसे एक विशेष […]
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