बिखरे मोती-भाग 85 गतांक से आगे….होनी हो अनहोनी जब,सो जाता है विवेक।ऐसे समय में जागता,कोई बिरला एक ।। 869।। व्याख्या :-कैसी विडंबना है मानवीय जीवन में जब कोई दुखद घटना होती है, तो उससे पूर्व मनुष्य की बुद्घि भ्रष्ट होती है। इसीलिए कहा गया है ‘विनाशकाले विपरीत बुद्घि’ विपत्ति के समय ऐसे व्यक्ति बहुत कम […]