चित्त और वित्त की पवित्रता से हमारा हृदय पवित्र रहता है। हृदय की पवित्रता से विचार होता है विचार की पवित्रता से हमारी वाणी की पवित्रता बनी रहती है, उसमें मिठास रहती है और वह किसी को कटु नहीं बोलती। वाणी की पवित्रता से हमारे चारों ओर का परिवेश शुद्घ और पवित्र रहता है। यह […]
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देवेन्द्रसिंह आर्य (चेयरमैन) प्राचीन काल से अद्यतन पर्यन्त मानव की इच्छा रही है -शांति की खोज। इसलिए चाहे आज का मानव कितना भी भौतिक संसाधनों से परिपूर्ण है, तथा कितना भी व्यस्त है, परंतु वह एक असीम शांति की चाह में अवश्य है। मानव को असीम शांति कैसे प्राप्त हो सकती है? इस पर हमारे […]
बिखरे मोती-भाग 9५ गतांक से आगे….धर्महीन जीवन सदा,बिन पतवार की नाव।लक्ष्य तक पहुंचे नही,बीच में देय डुबाय।। 919।। व्याख्या :धर्महीन जीवन बिना पतवार की नाव के समान है। जिस प्रकार बिना पतवार के नाव, अपने गंतव्य स्थान तक नही पहुंच पाती है, उसे लहरें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती हैं, कभी-कभी तो […]