गतांक से आगे…. ब्रह्म तो मायाधीश है, जीव है मायाधीन। माया बंध को तोडक़र, बिरला हो स्वाधीन ।। 970।। व्याख्या :-इस संसार में जीव, ब्रह्म, प्रकृति अनादि हैं। तीनों की अपने-अपने क्षेत्र में सत्ता है किंतु सर्वोच्च सत्ता ब्रह्म की है। जीव और प्रकृति का अधिष्ठाता ब्रह्म है। जीवों के आवागमन के क्रम का […]