जन डोले जीवन डोले और डोला सब संसार रे जब बजी वेद की बांसुरिया रे 1. परमेश्वर की अनुकम्पा से एक तपस्वी आया। जिसने जनता को नवयुग का नव संदेश सुनाया हो प्यारे नव संदेश सुनाया रे…. जब…. 2. जनता जागी निद्रा त्यगी सुमिर-सुमिर ओंकार रे…. जब बजी वेद की… सब पाखण्डी कुरीतियों से उडक़र […]
Tag: #महर्षि दयानन्द सरस्वती
जन्मजात दार्शनिक
स्वामी दयानन्द जन्मजात दार्शनिक थे, इस कारण नहीं कि वे प्रारम्भ से मूडी या उदासमुख थे, अपितु इस कारण कि भावी दार्शनिक की भांति बाल्यकाल से उनकी आत्मा में जीवन की जटिल समस्याओं का हल खोजने की ललक थी। इस प्रयोजन से उनके जीवन की दो घटनायें प्रस्तुत की जा रही हैं जो भविष्य में […]
संतोष सिन्हा श्री रामनाथ लूथरा एक हिंदूवादी चिन्तक हैं जो कि भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास के लिए विशेष कार्य करते रहते हैं। इनका मानना है कि महर्षि दयानंद के पुरूषार्थ से यह देश कभी भी उऋण नहीं हो सकेगा। श्री लूथरा ने ‘उगता भारत’ के साथ एक विशेष बातचीत में कहा कि महर्षि दयानंद […]
भारत के स्वाधीनता संग्राम की शांतिधारा और क्रान्तिधारा दो धाराओं का अक्सर उल्लेख किया जाता है। शांतिधारा से ही नरम दलीय और गरम दलीय दो विचारधाराओं का जन्म हुआ-जन्म हुआ-ऐसा भी माना जाता है। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज इन दोनों ही विचारधाराओं के जनक होने से भारतीय स्वाधीनता संग्राम के किस प्रकार ‘प्रपितामह’ हो […]
जिस वर्ष आर्य समाज की स्थापना हुई उसी वर्ष 1875 में अमेरिका के न्यूयार्क नगर में कुछ लोगों ने आत्मचिंतन के लिए एक सभा बनाने का निश्चय किया और इसे थियोसोफिकल सोसाइटी का नाम दिया। दो मास के अंदर ही इस सभा के सभासदों में परस्पर विग्रह उत्पन्न हो गया, तब यह विचार हुआ कि […]
स्वामी दयानन्द ने अपने लेखन में अनेक स्थलों पर इस आरोपण का खण्डन किया है कि वेद बहुदेववाद, एकाधिदेववाद अथवा देवतावाद का प्रतिपादन करते हैं। डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भी उनसे सहमति जताते हुए लिखते हैं-”एक महत्वपूर्ण बात ध्यान में रखनी चाहिए कि ‘देव’ शब्द एकार्थी नहीं, अनेकार्थी है। देव वह है जो मनुष्य को देता […]
एकतत्त्ववाद बनाम त्रैतवाद स्वामी दयानन्द एकेश्वरवाद को मानते हैं, जिसका अर्थ है कि ईश्वर एक है। वस्तुत: अनेकता की धारणा ईश्वर-विचार के विरूद्घ है। नव्य वेदांत की धारणा भी वेद में नहीं है। नव्य-वेदान्त का सिद्घान्त तो अनिर्वचनीय माया के वर्णन के बिना स्थापित ही नहीं होता। वेदों में माया शब्द का प्रयोग अविद्या अथवा […]
स्वामी दयानन्द का चरित्र क्या यह बतलाने की आवश्यकता है कि स्वामीजी का आचार वैसा ही महान था जैसा कि एक महापुरूष का होना चाहिए? शुद्घ आचार के बिना कोई महापुरूष नहीं हो सकता। उनका जीवन, उनका प्रचार कार्य, उनका कृतित्व, उनके शुद्घाचारी होने की पूर्ण साक्षी है। कैरेक्टर का अर्थ आचार है, किन्तु यह […]
(अ) बंगाल के पत्र (1) कलकत्ता का पत्र-बंगाली (3 नवंबर 1883), (2) इंडियन एम्पायर, कलकत्ता (4 नवंबर 1883), (3) हिंदू पेट्रियेट कलकत्ता (4) पब्लिक ओपीनियन, कलकत्ता (नवंबर 1883), (5) लिबरल कलकत्ता (11 नवंबर) (6) इंडियन मैसेंजर, कलकत्ता (11 नवंबर 1883), (7) इंगलिश क्रोनिकल, बॉकीपुर पटना (5 नवंबर 1883)। (आ) बम्बई प्रान्त के पत्र (1) इंडियन […]
जब दयानन्द ने सत्य की खोज में गृह-त्याग किया तब उनका झुकाव वेदान्त की ओर हो गया था। वे ऐसे विद्वान संन्यासियों के संपर्क में आ गये थे जिन पर शांकर मत का प्रभाव था। उन्होंने अनेक वर्षों तक वेदान्त दर्शन एवं तत्सम्बन्धी ग्रंथों का अध्ययन एवं विचार किया था। एक समय तो वे भी […]