भारत की संस्कृति जातिवादी व्यवस्था की विरोधी है। यह मानव मात्र की एक ही जाति मानती है और मानव को ‘एक’ बनने के लिए संस्कारित करने पर बल देती है। भारतीय संस्कृति के इस प्राणसूत्र को महर्षि मनु ने मनुस्मृति में ‘जन्मना जायते शूद्र: संस्कारात्द्विज उच्यते’ कहकर स्थान दिया है। जब महर्षि मनु ऐसा कहते […]