कश्मीर पर कांग्रेस की भाषाकश्मीर को लेकर कांग्रेस का वास्तविक चेहरा एक बार पुन: सामने आया है। कांग्रेस के पी. चिदंबरम ने कहा है कि कश्मीर को अधिक स्वायत्तता दिये जाने की आवश्यकता है। इस पर पलटवार करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे कांग्रेस की पाकिस्तान परस्त भाषा कहा है। वास्तव में कांग्रेस इस […]
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भारत के राजनैतिक नेतृत्व से ऐसी अपेक्षा की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसे तो वोटों की राजनीति करनी है। मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च में जाकर उन्हीं की पोशाक पहनना और उन्हीं की बोली बोलना आज हमारे इन राजनीतिज्ञों का शगुन हो गया है। इन धर्महीनों से राष्ट्रधर्म पालन करने की अपेक्षा करना बेमानी है। […]
राष्ट्र भाषा हिन्दी की दुर्गति, भाग-3 भारत में संविधान के अंदर एक दर्जन से भी अधिक भारतीय भाषाओं को मान्यता प्रदान कर दी गयी है। यदि राजभाषा हिंदी अपने सही ढंग से उन्नति करती और उसकी उन्नति पर हमारी सरकारें (केन्द्रीय और प्रांतीय दोनों) ध्यान देतीं तो आज जो क्षेत्रीय भाषाई लोग अपनी-अपनी भाषाओं को […]
जिस देश की अपनी कोई भाषा नहीं होती- वह बैसाखियों पर चलता है। ऐसे देश की स्वाधीनता उधार होती है, उसकी आस्थायें उधार होती हैं, उसकी मान्यतायें और परम्परायें भी उधार होती हैं। जब ऐसी परिस्थितियां किसी देश के समाज में बन जाया करती हैं तब इस देश का सांस्कृतिक पतन होने लगता है। आज […]
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा का स्तर दिया गया। हिंदी को ही राजभाषा भी माना गया। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार हिंदी भारत की राजभाषा तथा देवनागरी इसकी लिपि है। यह दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि व्यवहार में हमारा यह संवैधानिक अनुच्छेद हमारा राष्ट्रीय संकल्प न बनकर केवल कागज का […]
अशोक प्रवृद्ध बोलने वाली भाषा शब्दों से बनती है । शब्द अर्थ से युक्त हों तो भाषा बन जाती है । अत: बोलने वाली भाषा अर्थयुक्त वाक्य है । भाषा की श्रेष्ठता भावों को सुगमता से व्यक्त करने की सामथ्र्य है । भावों को व्यक्त करने की सामथ्र्य को ही भाषा की शक्ति माना जाता […]
डॉ. वेदप्रताप वैदिक सौ साल पहले तक फिनलैंड के लोग स्वीड भाषा का इस्तेमाल करते थे। उन्होंने एक दिन तय किया कि वे अपनी भाषा चलाएंगे। बस, दूसरे दिन से ही काम शुरू हो गया। और आज फिनी भाषा के ज़रिए सारा कामकाज अच्छी तरह चल रहा है। असल बात है, तय कर लेना। 1966 […]
डा. विष्णुकांत शास्त्री भारतीय संस्कृति के विषय में लिखते हैं :-‘‘जीवन को सुसंस्कृत करते रहने के तीन साधन हमारे पूर्वजों ने बताये हैं। गुणाधान (गुणों को अर्जित करना) दोषापनयन (दोषों को दूर करना) और हीनांगपूत्र्ति (सतकर्म के लिए अन्य लोगों से सहायता साधन-आवश्यक अवयव प्राप्त करना)। ऋग्वेद की ही उक्ति है-‘‘आ नो भद्रा : क्रतवो […]
डा. भरत झुनझुनवाला कौशल विकास के माध्यम से रोजगार उत्पन्न करने के लिए सरकार को चाहिए कि जर्मन, फ्रेंच, चाइनीज तथा जापानी जैसी भाषाओं का भारत में विस्तार करें। स्नातक छात्रों के लिए एक विदेशी भाषा को सीखना अनिवार्य बना देना चाहिए। कई अमरीकी विश्वविद्यालयों में ऐसी व्यवस्था लागू है। देश के हर जिले में […]
अशोक प्रवृद्ध संसार की समृद्धतम भाषा संस्कृत भारतीय संस्कृति का आधारस्तम्भ है।देवभाषा के नाम से जानी जाने वाली संस्कृत संसार की समस्तभाषाओं की जननी है। वेद भी संस्कृत भाषा में होने के कारण इसे वैदिक भाषा भी कहा जाता है। संस्कृत शब्द का अर्थ होता है-परिष्कृत, पूर्ण एवं अलंकृत। संस्कृत में बहुत कम शब्दों में […]