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मुद्दा राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

पत्थरबाजो! भारत छोड़ो,’ भाग-4

पिछले लेखों में हम मध्य प्रदेश ‘हिंदी ग्रंथ अकादमी’ द्वारा प्रकाशित ‘भारत: हजारों वर्षों की पराधीनता एक औपनिवेशिक भ्रमजाल’ पुस्तक के आधार पर चर्चा कर रहे थे कि कितना भारत कितनी देर विदेशी शासन के आधीन रहा और कौन सा क्षेत्र अपनी स्वतंत्रता को बचाये रखने में सफल रहा? इस आलेख में भी उसी चर्चा […]

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संपादकीय

छद्म धर्मनिरपेक्षता के साये में चलते इतिहास के कुछ झूठ, भाग-2

विदेशी शासक सन् 1206 ई. में जब यहां कुतुबुद्दीन ऐबक ने सत्ता संभाली तो वह एक ‘गुलाम’ शासक था। जिसकी हैसियत ‘गुलाम’ शासक जैसी ही थी। ‘गुलाम वंश’ केे शासनकाल को उल्लिखित कर स्पष्ट करने वाले अभिलेखों के अवलोकन से उसकी यह स्थिति आज भी स्पष्ट हो जाएगी। किंतु दुर्भाग्य इस देश का यह रहा […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

‘पत्थरबाजो! भारत छोड़ो,’ भाग-3

(14) कांगड़ा-यहां पर पिछले 18000 वर्ष के इतिहास के कालखण्ड में 1620 से 1810 तक मुस्लिम शासन रहा अर्थात कुल 190 वर्ष तक यहां मुस्लिम शासन और 1856 ई. से 1947 तक कुल 90-91 वर्ष तक ब्रिटिश शासन रहा। शेष अवधि में अपनी स्वतंत्रता और अस्मिता को बचाये रखने में यह क्षेत्र भी सफल रहा। […]

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संपादकीय

छद्म धर्मनिरपेक्षता के साये में चलते इतिहास के कुछ झूठ

भारत में छद्म धर्मनिरपेक्षियों का एकमात्र उद्देश्य इस देश में साम्राज्यवाद को बढ़ावा देना है। यह बढ़ावा देने की प्रवृत्ति उनके हिन्दू विरोध को देखने से स्पष्ट हो जाती है। इस हिन्दू विरोध की प्रवृत्ति के कारण इतिहास के कई झूठ ऐसे हैं जो इस देश में पहले तो विदेशियों के द्वारा गढ़े गये और […]

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मुद्दा राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

‘पत्थरबाजो! भारत छोड़ो,’ भाग-2

एक शोधपूर्ण प्रशंसनीय ग्रंथ मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा ‘भारत हजारों वर्षों की पराधीनता एक औपनिवेशिक भ्रमजाल’ में बड़े शोधपूर्ण ढंग से हमें बताया गया है कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर मुस्लिम और ब्रिटिश शासन की अवधि कितने समय तक रही? इस सारणी को देखकर हमें पता चलता है कि भारत के हिंदू […]

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मुद्दा राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

‘पत्थरबाजो! भारत छोड़ो,’ भाग-1

पूरे देश से इस समय एक आवाज उठ रही है कि ‘कश्मीर के पत्थरबाजो! भारत छोड़ो।’ इस आवाज को पूर्णत: न्यायसंगत एवं उचित कहा जाएगा। 1942 की अगस्त में जब गांधीजी ने अंग्र्रेजों के विरूद्घ ‘अंग्रेजो! भारत छोड़ो’ की आवाज लगायी थी तो उसके पीछे भी इस राष्ट्र के मचलते हुए चिंतन का यही पहलू […]

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मुद्दा राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

भारत को जातियों में बांटने वाले मक्कार इतिहासकार

सहारनपुर दंगों के मर्म को समझने के लिए अपने इतिहास के इस सच को भी समझना होगा। भारत में आर्यों को विदेशी बताने वालों ने ही यहां गोरे-काले अथवा आर्य-द्राविड़ का भेद उत्पन्न किया। जिससे यह बात सिद्घ हो सके कि भारत में तो प्राचीन काल से ही गोरे-काले का भेद रहा है और यहां […]

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राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

मोदी सरकार के तीन वर्ष

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बने तीन वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। उनके लिए यह एकसुखद तथ्य है कि वह आज भी अपनी लोकप्रियता को वैसी ही बनाये हुए हैं जैसी सत्ता संभालते समय 2014 में थी। यह उनकी उपलब्धि भी कही जाएगी। दूसरे उनके लिए यह एक और प्रसन्नतादायक तथ्य है कि […]

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मनु की राजव्यवस्था

भारत की जाति व्यवस्था और मनु

भारत की संस्कृति जातिवादी व्यवस्था की विरोधी है। यह मानव मात्र की एक ही जाति मानती है और मानव को ‘एक’ बनने के लिए संस्कारित करने पर बल देती है। भारतीय संस्कृति के इस प्राणसूत्र को महर्षि मनु ने मनुस्मृति में ‘जन्मना जायते शूद्र: संस्कारात्द्विज उच्यते’ कहकर स्थान दिया है। जब महर्षि मनु ऐसा कहते […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

आवश्यकता है रामायण रेलमार्ग और उच्च राजपथ की

रामचंद्रजी महाराज भारत की संस्कृति के मर्यादा पुरूषोत्तम हैं, उनके बिना भारत की संस्कृति का जीवंत उदाहरण देना हमें कठिन हो जाएगा। भारत की मर्यादित संस्कृति की रक्षा कोई ऋषि, संत या महात्मा करे यह तो संभव है, पर इस कार्य को कोई राजवंशी राजपुरूष मर्यादित रहकर करे-यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण बात है। […]

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