महर्षि दयानंद ने कहा था- ”यदि अब भी यज्ञों का प्रचार-प्रसार हो जाए तो राष्ट्र और विश्व पुन: समृद्घिशाली व ऐश्वर्यों से पूरित हो जाएगा।” इस बात से लगता है कि भारत सरकार से पहले इसे विश्व ने समझ लिया है। देखिये-फ्रांसीसी वैज्ञानिक प्रो. टिलवट ने कहा है- ”जलती हुई खाण्ड के धुएं में पर्यावरण […]
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ईश्वर के प्रति कृतज्ञता अपनायें अब विचार करें कि उसे हम क्या दे रहे हैं? कदाचित ‘कुछ भी नहीं’ उसके प्रति कोई कृतज्ञता नहंी, कोई धन्यवाद नहीं। यही तो है नास्तिकता। यदि हम ईश्वर के प्रति भी कृतज्ञ होकर धन्यवाद करना और कहना सीख लें तो हमारे और शेष संसार के संबंध मानवीय ही नहीं, […]
कोई पदार्थ नष्ट नहीं होता विज्ञान का यह भारतीय सिद्घांत है कि कोई भी पदार्थ यथार्थ में कभी भी समाप्त नही होता, वरन उसका रूपांतरण ही होता है। संसार के अन्य लोग इस आत्मतत्व को आज तक नही समझ सके, वे लोग आज भी (जबकि विज्ञान का युग है) शरीर के अंत को ही आत्मा […]
‘तुम दिन को अगर रात कहो तो हम भी रात कहेंगे’ भारत की सरकारों की सोच पश्चिम के विषय में यही है। पश्चिमी देश जो कहते हैं और करते हैं-उसे भारत सरकार आंख मूंदकर ग्रहण कर लेती है। भारत की पर्यावरण नीति भी ऐसी ही है, जैसी कि पश्चिमी देशों की है। कोई नया आदर्श […]
21 जून भारतीयता के गुण गौरव के गुणगान का दिवस बन गया है। इस दिन सारा देश ही नहीं, अपितु सारा विश्व ही भारतीय संस्कृति की महानता और उसकी सर्वग्राहयता के समक्ष शीश झुकाता है। मां भारती की आरती में सारा संसार नतमस्तक हो जाता है और कह उठता है :- ”हे भारत की पवित्र […]
मानव को मानव का विशेष यौन धर्म समझाकर उसके जीवन को संतुलित, मर्यादित और साधनामय बनाने की आवश्यकता है, इससे सभ्य समाज का निर्माण होगा। इसी से विश्व का कल्याण होगा और इसी आवश्यकता की पूत्र्ति से समाज की अस्त-व्यस्त अव्यवस्था ठीक होगी। मानव को मानव बना दें, यह सबसे बड़ा उपकार है। मानव स्वयं […]
इस प्रकार भारत का निर्धन वर्ग भारतीय परंपरा का निर्वाह करते हुए संतानोत्पादन करता है। वह यह भी जानता है कि जो भी जीव गर्भ में आ गया उसे समय से पहले बलात् बाहर निकालना अर्थात उसका गर्भपात कराना-एक हत्या करना है। जबकि धनिक वर्ग के लोग निरोध आदि से वीर्य नाश तो करते ही […]
प्राचीन भारत के लगभग सभी राजशास्त्रियों ने राजा की सफलता के लिए षाड्गुण्य मत के साथ-साथ उपायों का भी वर्णन किया है। कामंदक का कथन है कि उपाय से मतवाले हाथियों के मस्तक पर भी चरण रख दिया जाता है। जल अग्नि को बुझाता है, परंतु उपाय द्वारा इस अग्नि से ही वह जल सुखा […]
सभी कुछ भोग में घटित हो गया, सारा आनंद भोग में समझा जाने लगा। तब संतान के बारे में हमारा दृष्टिकोण भी परिवर्तित हो गया। अब दिव्य संतति नहीं अपितु कामी संतति हम उत्पन्न करने लगे। परिणामस्वरूप भारतीय समाज और राष्ट्र दोनों में दिव्यता को घुन लग गया और समाज ने दिव्य और सज्जनों के […]
अत: पश्चिम का आज का भौतिकवाद जिस प्रकार की श्रंगारप्रिय सामग्री मानव को परोस रहा है उसमें कामचेष्टा बलवती होनी स्वाभाविक है। तेल, उबटन, स्नान, इत्र, माला, आभूषण, अट्टालिका आदि के मध्य रहकर कोई स्त्री प्रसंग का निषेध करेगा भी तो कुण्ठा और मानसिक तनाव की अन्य व्याधियों से ग्रसित होगा ही। जैसे-खाली मन इंसान […]