बिखरे मोती-भाग 190 गतांक से आगे…. कहने का अभिप्राय है कि जो व्यक्ति पैसे के लिए दूसरों का हक मारते हैं, उनका टेंटुआ दबाते हैं, उन्हें पाप-पुण्य अथवा धर्म-कर्म की चिंता नहीं, उन्हें तो पैसा चाहिए, पैसा। चाहे वह ईमानदारी के बजाए बेशक बेइमानी से आये, उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं। ऐसे लोग […]
टैग: बिखरे मोती
बिखरे मोती-भाग 176 गतांक से आगे…. अहंता भगवान में लग जाने पर चित्त स्वत: स्वाभाविक भगवान में लग जाता है-जैसे शिष्य बन जाने पर ‘मैं गुरू का हूं।’ इस प्रकार अहंता गुरू में लग जाने पर गुरू की यादें सर्वदा चित्त में बनी रहती हैं। वैसे देखा जाए तो गुरू के साथ शिष्य स्वयं संबंध […]
बिखरे मोती-भाग 173 गतांक से आगे…. महर्षि सनत्कुमार ने कहा-ध्यान से बड़ा विज्ञान है। विज्ञान द्वारा ही ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद आदि, द्यु, पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, अग्नि तथा धर्म-अधर्म सत्य-असत्य इत्यादि का ज्ञान होता है। इसलिए हे नारद! तू विज्ञान की उपासना कर। नारद ने फिर पूछा, विज्ञान से बढक़र क्या है? भगवन। महर्षि […]
बिखरे मोती-भाग 172 गतांक से आगे…. यह सुनकर सनत्कुमार ने देवर्षि नारद से पूछा-जो कुछ तुम जानते हो, पहले वह बताओ? नारद ने कहा, मैंने चारों वेद, उपवेद, इतिहास, पुराण, गणित, नीति शास्त्र, तर्कशास्त्र अथवा कानून , देवविद्या (निरूक्त) भौतिक रसायन व प्राणीशास्त्र नक्षत्र विद्या (ज्योतिष) निधि शास्त्र (अर्थशास्त्र) ब्रह्मविद्या इत्यादि को पढ़ा है। यह […]
ब्रह्मभाव को प्राप्त हो, जो रहता द्वन्द्वातीतगतांक से आगे….यदि इस सीढ़ी पर संभलकर चला जाए अर्थात इसका परिष्कार कर लिया जाए तो हमारी वृत्तियां तथा बुद्घि स्वत: ही शुद्घ हो जाएंगी। जिसके फलस्वरूप हमारी गति हो सकती है अर्थात हम मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए मन का निर्मल होना परमआवश्यक है। जो साधक […]
धर्मानुरागी को चाहिए, तज दे वचन कठोरगतांक से आगे….शठ-धूर्त, दुष्टनिष्ठुर-कठोर हृदय वाला, दया रहित दन्द शूक-मर्म स्थान पर चोट करने वाला। स्वार्थ जिद अहंकार से,टूटते हैं परिवार।क्षमा समन्वय प्रेम से,खुशहाल रहें परिवार ।। 729 ।। पुण्य प्रार्थना रोज कर,इनको कल पै न छोड़।डाली पै लटका आम तू,कब ले माली तोड़ ।। 730 ।। असूया कभी […]
राही तू आनंद लोक का, जहां पुण्य से मिलै प्रवेशगतांक से आगे….सुहृद पिछनै विपत में,भय के समय में वीर।सत्पुरूष पिछनै शील से,धन-संकट में धीर ।। 720 ।। अर्थात विपत्ति के आने पर व्यक्ति मित्र है अथवा शत्रु, इसकी पहचान होती है। भय के उत्पन्न होने पर व्यक्ति कायर है, अथवा वीर इस बात का पता […]
अनीति नीति सी लगै, जब होता निकट विनाशगतांक से आगे….वाणी का संयम कठिन,परिमित ही तू बोल।वाणी तप के कारनै,बढ़ै मनुज का मोल ।। 708 ।। अच्छी वाणी मनुज का,करती विविध कल्याण।वाणी गर होवै बुरी,तो ले लेती है प्राण ।। 709 ।। कुल्हाड़े से काटन वृक्ष तो,पुन: हरा हो जाए।बुरे वचन के घाव तै,हृदय उभर नही […]
सारा खेल बिगाड़ दे, एक अहंकार की चूकगतांक से आगे….दुष्टों का सहयोग ले,उपकृत हो यदि संत।श्रेय को लेवें दुष्टजन,कड़वा होवै अंत ।। 695 ।। भाव यह है कि सत्पुरूषों को चाहिए कि जहां तक हो सके किसी सत्कार्य में दुष्टों का सहयोग नही लेना चाहिए। अन्यथा दुष्टजन सत्कार्य का श्रेय स्वयं लेकर संतों को उपेक्षित […]
जीवन में कभी भूल कै, मत करना अभिमानगतांक से आगे….निश्चय बुद्घिमान का,और देवों का संकल्प।विद्वानों की नम्रता,इनका नही विकल्प ।। 667।। धृति क्षमा सत दान को,भूलकै भी मत त्याग।पुरूषार्थ को मिलै सफलता,जाग सके तो जाग ।। 668।। आज्ञाकारी पुत्र हो,प्रियवादिनी नार।सेहत विद्या लक्ष्मी,से प्रिय लगै संसार ।। 669।। अर्थात वश में रहने वाला पुत्र हो, […]