भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपना औचित्य, महत्व, निष्पक्षता और प्रासंगिकता को अनेकों बार स्थापित कर चुका है। अभी हाल ही में उसने फिर एक बार अपने आपको सरकार का ‘मार्गदर्शक’ सिद्घ किया है। यद्यपि लोकतंत्र में विधायिका और न्यायपालिका की अपनी-अपनी सीमाएं हैं, और इन दोनों को कभी भी अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नही करना […]
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