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बिखरे मोती

ज्ञान प्रेम संसार में, प्रभु की अनुपम देन

गतांक से आगे….आत्मा को परमात्मा,करे सदा आगाह।ज्ञानी आग्रह ना करै,सिर्फ बतावै राह।। 977।। व्याख्या :-मनुष्य जब भी कोई कुकर्म करता है तो तत्क्षण अंदर से आत्मा उसे रोकती है किंतु मनुष्य अज्ञान और अहंकार के कारण आत्मा की इस मूक आवाज को अनसुनी कर देता है। वास्तव में यह आवाज परमात्मा की प्रेरणा होती है, […]

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बिखरे मोती

प्रभु चरणों में चित लगै, वो क्षण है अनमोल

गतांक से आगे….मत जी खाने के लिए,जीने के लिए खाय।मन को रखना मोद में,रोग निकट नही आय ।। 963।। व्याख्या : महर्षि पतंजलि ने कहा था-हित भुक, मितभुक, ऋतभुक अर्थात भोजन ऐसा करो जो तुम्हारे शरीर की प्रकृति और ऋतु के अनुकूल हो किंतु भूख से थोड़ा खाओ। अत: मनुष्य को खाने के लिए नही […]

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बिखरे मोती

प्रभु पालक है सृष्टि का, पर देता नही जताव

बिखरे मोती भाग-78 गतांक से आगे….जिस प्रकार अग्नि ईंधन से तृप्त नही होती, जिना ईंधन डालते जाओगे उतनी ही बढ़ती जाती है। ठीक इसी प्रकार स्त्रियों की तृष्णा मांग, कामनाएं पुरूष जितनी पूरी करता जाता है, उतनी ही वे बढ़ती जाती हैं।सागर में नदियां पड़ैं,फिर भी बाढ़ न आय।मृत्यु तृप्त होती नही,सबै मारकै खाय ।। […]

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अन्य कविता

प्रभु की वाणी वेद

आओ हम सब पढ़े-पढ़ावें, प्रभु की वाणी वेद है।जिससे कट जाते हर संकट, मिट जाते उर भेद हैं॥ 1.वेद प्रभु की सच्ची पूँजी, वेद आन और बान है।वेद प्रभु की ज्ञान की कुंजी, वेद प्रभु की शान है।पढ़े-पढ़ायें, सुने-सुनायें, चले ढलें श्रुति वेद हैं॥जिससे कट जाते……… 2.वेद ही हर मानव को जग में,मानवता सिखलाते हैं।ॠषि-मुनि […]

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