नाथ करूणा रूप करूणा आपकी सब पर रहे गतांक से आगे…. कहा गया है कि वह परमात्मा ‘अकाम:’ अर्थात कामनाओं से मुक्त कामना रहित है, वह किसी भी प्रकार की कामना के फेर में नहीं पड़ता। जैसे हम सांसारिक लोगों की कामनाएं होती हैं-वैसे उसकी कोई कामना नही होती। वह धीर है अर्थात असीम धैर्यवान […]
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पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-77
नाथ करूणा रूप करूणा आपकी सब पर रहे गतांक से आगे…. संसार के किसी न्यायाधीश से जब कोई व्यक्ति स्वयं को आहत मानता है तो वह दया की भीख इसीलिए मांगता है कि दण्ड अपेक्षा से अधिक कठोर हो गया है-उसे दयालुतापूर्ण कर लिया जाए। न्यायिक प्रक्रिया में फिर भी कहीं कोई दोष त्रुटि या […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-75
हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रह्वहे गतांक से आगे…. कथावाचकों की फीस लाखों में पहुंच गयी है। धर्म और प्रवचन बेचे जा रहे हैं। उनके माध्यम से अश्लीलता परोसी जा रही है। ‘इदन्नमम्’ का सार्थक व्यवहार समाप्त हो गया है, जिससे लोभवृत्ति में वृद्घि हो गयी है, झूठे अहम् को लेकर लड़ाई झगड़े […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-72
हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे विनम्रता वैदिक धर्म का एक प्रमुख गुण है। सारी विषम परिस्थितियों को अनुकूल करने में कई बार विनम्रता ही काम आती है। इसीलिए विनम्र बनाने के लिए विद्या देने की व्यवस्था की जाती है। विद्या बिना विनम्रता के कोई लाभ नहीं दे सकती और विनम्रता बिना विद्या […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-71
इदन्नमम् का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो अब ज्ञान की जितनी बाल्टी खींचता जाता था कुंआ उतना ही भरता जाता था। वह ज्ञान बांटता गया और विद्यादान से बहुतों के जीवन में ज्ञान प्रकाश करता गया। उधर ईश्वर प्रसन्न होते गये-इस भक्त के इस ‘इदन्नमम्’ रूपी सार्थक जीवन पर। वह उस पर कृपालु होते गये-और […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-67
इदन्नमम् का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो इदन्नमम् की सार्थक जीवन शैली ही विश्वशांति और विश्व कल्याण की एकमात्र कसौटी है। अभी तक हमने इसी विषय पर पूर्व में भी कई बार अपने विचार स्पष्ट किये हैं। अब इस अध्याय में पुन: कुछ थोड़ा विस्तार से अपने विचार इस विषय पर रखे जा रहे हैं। […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-66
स्वार्थभाव मिटे हमारा प्रेमपथ विस्तार हो गतांक से आगे…. नीति शतक में भर्तृहरि जी कहते हैं कि दान, भोग और नाश धन की ये तीन गति होती हैं। जो न देता है, और न खाता है उसके धन की तीसरी गति होती है अर्थात उसके धन का नाश होता है। संसार में ऐसा ही देखने […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-64
स्वार्थभाव मिटे हमारा प्रेमपथ विस्तार हो गतांक से आगे…. निस्संदेह यह प्रेम ही था जो आपको वहां ले गया जो संकीर्ण सीमाओं के बंधन से परे है। प्रेम के सामने प्रांत, देश, महाद्वीप, महासागर, संप्रदाय, भाषा, रंग-रूप, धन संपदा आदि सबके सब तुच्छ हैं। एक विद्वान लिखते हैं-”प्रेम सब प्रकार की संकीर्णताओं को भस्मसात कर […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-63
स्वार्थभाव मिटे हमारा प्रेमपथ विस्तार हो गतांक से आगे…. स्वस्ति पन्थामनुचरेम् सूय्र्याचन्द्रमसाविव। पुनर्ददताअघ्नता जानता संगमेमहि।। (ऋ. 5/51/15) इस मंत्र में वेद कह रहा है कि जैसे सूर्य और चंद्रमा अपनी मर्यादा में रहते और मर्यादा पथ में ही भ्रमण करते हैं, कभी अपने मर्यादा पथ का उल्लंघन नही करते वैसे हमें भी अपने कल्याणकारी मार्ग […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-62
स्वार्थभाव मिटे हमारा प्रेमपथ विस्तार हो गतांक से आगे…. आज बुद्घ ने अप्रत्याशित बात कह दी, जो बुद्घ सबको गले लगाकर चलते थे। वह आज बोले-”नहीं, उसके लिए द्वार नहीं खोलने हैं क्योंकि वह अस्पृश्य है।” सिद्घांतप्रियता व्यक्ति को प्रेम साधना की ऊंचाई तक ले जाती है। उसे पता होता है कि सिद्घांतों की रक्षा […]