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बिखरे मोती

धनपति और पृथ्वीपति, कहला गये अनेक

बिखरे मोती-भाग 191 गतांक से आगे…. यदि वाणी में आकर्षण नहीं अपितु विकर्षण है तो परिजन, मित्र बंधु-बांधव, अनुयायी, भृत्य और प्रशंसक ऐसे छोडक़र चले जाते हैं जैसे सूखे वृक्ष को छोडक़र पक्षी चले जाते हैं। इसलिए श्रेष्ठता का ताज व्यक्ति की वाणी पर टिका है, क्योंकि वाणी ही व्यवहार का आधार होती है। सम्राट […]

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