स्वामी दयानन्द की इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि महर्षि दयानंद सरस्वती जनता में इतना संभल कर बोलते थे कि स्वतंत्रता की भावना तो जनमानस में रच-बस जाए, परंतु क्रूर अंग्रेज शासकों के पंजे से भी बचा जा सके, स्वदेशी आंदोलन का प्रचार प्रसार करने, उसके लिए जनमत तैयार करने एवं पराकाष्ठा तक पहुंचाने में […]
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पिछले अंक से आगे…. दयानंद महाविद्यालय गुरुकुल डौरली की स्थापना 1925 में हुई। श्री अलगू राय शास्त्री इसके प्रथम आचार्य नियुक्त हुए। इस विद्यालय की स्थापना हेतु भूमिदान पंडित शिव दयालु ने किया। यह विद्यालय प्रारंभ से ही राष्ट्रीयता की भावना को प्रभावी बनाने का कार्य करने लगा। फलस्वरूप गुरुकुल के आचार्यों, ब्रह्मचारियों तथा कर्मचारियों […]