गतांक से आगे….आत्मा को परमात्मा,करे सदा आगाह।ज्ञानी आग्रह ना करै,सिर्फ बतावै राह।। 977।। व्याख्या :-मनुष्य जब भी कोई कुकर्म करता है तो तत्क्षण अंदर से आत्मा उसे रोकती है किंतु मनुष्य अज्ञान और अहंकार के कारण आत्मा की इस मूक आवाज को अनसुनी कर देता है। वास्तव में यह आवाज परमात्मा की प्रेरणा होती है, […]
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सृष्टि की रचना करने के बाद से ईश्वर मनुष्यों को जन्म देता, पालन करता व उनकी सभी सुख सुविधा की व्यवस्थायें करता चला आ रहा है। हमारी यह सृष्टि लगभग 1 अरब 96 करोड़ वर्ष पूर्व ईश्वर के द्वारा अस्तित्व में आई है। सृष्टि को बनाकर ईश्वर ने वनस्पतियों व प्राणीजगत को बनाया और इसमें […]
राजगृह का बौद्ध बिहार उन दिनों तरुणी परिव्राजिका कुंडलकेशा के पांडित्य और सारिपुत्र की उत्कृष्ट योग-साधना की चर्चा का केंद्र बना हुआ था। रोज हजारों जिज्ञासु आते और कुंडलकेशा से समाधान प्राप्त करते जबकि सारिपुत्र आत्म-शोध के लिए नितांत एकाकी जीवन-यापन को ही महत्व दे रहे थे। उनका एकाकीपन भंग किया कुंडलकेशा ने। एक ओर […]
भारत का राष्ट्रीय ध्वज – तिरंगा भारत का राष्ट्रीय गान – जन-गन-मन भारत का राष्ट्रीय गीत – वन्दे मातरम भारत का राष्ट्रीय चिन्ह – अशोक स्तम्भ भारत का राष्ट्रीय पंचांग – शक संवत भारत का राष्ट्रीय वाक्य – सत्यमेव जयते भारत की राष्ट्रीयता – भारतीयता भारत की राष्ट्र भाषा – हिंदी भारत की राष्ट्रीय लिपि […]
बिखरे मोती-भाग 82 गतांक से आगे….राग रहित को होत है,ब्रह्मवित का अहसास।जैसे मिटते ही तिमिर के,प्रकट होय प्रकाश ।। 856 ।। ब्रह्मवित-ब्रह्म को जानने वाला उसमें अभिन्न भाव से स्थित होने वाला किंतु इस अवस्था को प्राप्त होकर भी अभिमान न करने वाला, सदा सौम्य बना रहने वाला।व्याख्या : संसार से राग मिटते ही ब्रह्म […]
गतांक से आगे……… यहां हम थोड़ा सा उसका इतिहास देकर उसके विषय प्रतिपादन की ओर आना चाहते हैं। तिलक महोदय ने ‘ओरायन मृगशीर्ष’ ग्रंथ लिखने के पांच वर्ष बाद सन 1898 में उत्तरधु्रव निवास लिखा और उसका सारांश एक पत्र द्वारा मैक्समूलर के पास भेजा। पत्र के उत्तर में मैक्समूलर ने लिखा कि कितने ही […]
गतांक से आगे…. इन्हीं दोनों को ऋग्वेद 10 /14/11 में यौ ते श्वानौ यम रक्षितारौ चतुरक्षौ पथिरक्षी कहा गया है। ये श्वान सदैव द्विवचन में कहे गये हैं, जिससे ज्ञात होता है कि वे दो हैं। पर तिलक महोदय श्वान के विषय के जो चार प्रमाण देते हैं, उनमें सर्वत्र एक ही वचनवाला श्वान कहा […]
गतांक से आगे…..बस, आकाशस्थ ऋषियों का इतना ही वर्णन करना है। इसके आगे अब यह दिखलाना है कि शरीरस्थ इंद्रियों को भी ऋषि कहा गया है। यजुर्वेद में लिखा है कि-सप्तऋषय: प्रतिहिता: शरीरे सत्प रक्षन्ति सदमप्रमादम।सप्ताप: स्वपतो लोकमीयुस्तत्र जागृतो अस्वप्नजौ सत्रसदौ च देवौ।अर्थात शरीर में सात ऋषियों का वास है उनके सोने पर भी दो […]
गतांक से आगे…..इसको स्वर्ग ऊपर भेजने वाले विश्वामित्र ही थे। इसलिए इस त्रिशंकु के नीचे ही, दक्षिण में विश्वामित्र नामी नक्षत्र होना चाहिए। क्योंकि उत्तर स्थित वशिष्ठ और दक्षिण स्थित विश्वामित्र के दिशाविरोध से ही वशिष्ठ और विश्वामित्र का विरोधालंकार प्रसिद्घ हुआ है। इन कौशिक अर्थात विश्वामित्र का वर्णन वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 80 में […]