गतांक से आगे…. हमको, आपको, तिलक महाराज को और अन्य किसी को भी क्या अधिकार है किवह इन समयों को पहिली ही आवृत्ति का समझे? अर्थात वह यह क्यों समझ ले कि यह अवस्था केवल अभी हाल ही की आवृत्ति की है? हम ऊपर लिख चुके हैं, कि किसी जमाने में वसंतसंपात फाल्गुनी पूर्णिमा के […]
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गतांक से आगे……ऋग्वेद में है कि-संवत्सरं शशयाना ब्राह्मण व्रतचारिण:।वाचं पर्जन्यजिन्वितां प्र मण्डूका अवादिषु:।।ब्राह्मणासो अतिरात्रे न सोमे सरो न पूर्णमभितो वदन्त:।संवतत्सरस्य तदह: परिष्ठ यन्मण्डूका: प्रावृषीण्र बभूव।।(ऋ 7/103/7)यहां स्पष्ट कहा गया है कि संवत्सर भर सोये हुए मण्डूक पर्जन्य पड़ते ही बोलने लगे, क्योंकि संवत्सरस्य तदह: अर्थात संवत्सर का वही दिन है। कहने का मतलब यह है […]
गतांक से आगे….. ये मिनट बढक़र दो हजार वर्ष में एक मास के बराबर हो जाते हैं। परिणाम यह होता है कि हर दो हजार वर्ष में वसंत सम्पात नाक्षत्र वर्ष से एक महीना पीछे हो जाता है। इसी कारण से कृत्तिकाकाल मृगशीर्षकाल और पुनर्वसुकाल से संबंध रखने वाले तीनों पंचांगों का वर्णन किया गया […]
गतांक से आगे….. ज्योतिष द्वारा स्थिर किया हुआ वेदों का समय अब तक दो आक्षेपों का उत्तर देते हुए दिखलाया गया है कि मिश्र की सभ्यता वेदों से पुरानी नही है और न वेदों में कोई ऐतिहासिक वर्णन ही है। उक्त दोनों आक्षेपों का जिनसे वेदों की आयु कायम की जाती है, संशोधन हो गया। […]
गतांक से आगे…..सृष्टि के यही लाखों पदार्थ अपने अपने गुणों और क्रियाओं से अपनी संज्ञा अर्थात अपना नाम आप ही आप चुनकर पुकारने लगते हैं और आज हम इन्हीं सब पदार्थों के व्यवहारों से उत्पन्न हुए लाखों शब्द बोलते हैं।यह मनुष्य बड़ा गंभीर है। इस वाक्य में बड़ा और गंभीर ये दोनों शब्द कहां से […]
गतांक से आगे….. कल्पना करो कि संसार में सबसे प्रथम आज एक विवाह हुआ। किंतु सवाल यह है कि उसी वक्त विवाह शब्द कहां से आ गया, जो इस पहलेपहल आज ही आरंभ होने वाले विवाह के लिए प्रकट किया गया? बात तो असल यह है कि विवाह तब से है जब से विवाह शब्द […]
गतांक से आगे…..नदियों के नामजिन शब्दों से यहां लोक की नदियां पुकारी जाती हैं, वेदों में उन्हीं शब्दों के कई अर्थ होते हैं। उन शब्दों का जो धात्वर्थ है, वह चलने वाला-बहने वाला-वेगवाला आदि होता है। नदियां भी इसी प्रकार का गुण रखती हैं। वे भी चलने वाली, बहने वाली और वेगवाली होती हैं, इसीलिए […]
गतांक से आगे…..इसको स्वर्ग ऊपर भेजने वाले विश्वामित्र ही थे। इसलिए इस त्रिशंकु के नीचे ही, दक्षिण में विश्वामित्र नामी नक्षत्र होना चाहिए। क्योंकि उत्तर स्थित वशिष्ठ और दक्षिण स्थित विश्वामित्र के दिशाविरोध से ही वशिष्ठ और विश्वामित्र का विरोधालंकार प्रसिद्घ हुआ है। इन कौशिक अर्थात विश्वामित्र का वर्णन वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 80 में […]