मनुष्य का जीवन व चरित्र उज्जवल होना चाहिये परन्तु आज ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है। जो जितना बड़ा होता है वह अधिक संदिग्ध चरित्र व जीवन वाला होता है। धर्म हो या राजनीति, व्यापार व अन्य कारोबार, शिक्षित व अशिक्षित सर्वत्र चरित्र में गड़बड़ होने का सन्देह बना रहता है। ऐसा होना नहीं […]
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एक संत हुए जो बड़े ही सदाचारी और लोकसेवी थे. उनके जीवन का मुख्य लक्ष्य परोपकार था. एक बार उनके आश्रम के निकट से देवताओं की टोली जा रही थी. संत आसन जमाये साधना में लीन थे. आखें खोली तो देखा सामने देवता गण खड़े हैं. संत ने उनका अभिवादन कर उन सबको आसन दिया. […]
मनमोहन आर्य वैदिक धर्म एक जीवन पद्धति है जो कि आघुनिक जीवन पद्धति से कुछ समानता रखने के साथ कुछ व कई बातों में इसके विपरीत भी है। अतः इन दोनों जीवन पद्धतियों में कौन सी पद्धति मनुष्यों के लिए श्रेयस्कर और श्रेष्ठ है और कौन सी नहीं है, इस पर विचार करना इस लिए […]
ललित गर्ग जिस तरह कण-कण में भगवान हैं, ठीक उसी तरह कण-कण में जीवन भी समाया है। संगीत की स्वर-लहरियों, पंछियों की चहचहाहट, सागर की लहरों, पत्तों की सरसराहट, मंदिर की घंटियों, मस्जिद की अजान, कोयल की कूक, मयूर के नयनाभिराम नृत्य, लहलहाते खेत, कृषक के मुस्कराते चेहरे, सावन की रिमझिम फुहार, इंद्रनुषी रंगों, बादलों […]
घनश्याम भारतीयभारत गांवो का देश है, क्योंकि देश की अधिकांश आबादी गांवो में बसती है। इसलिए गांवो और ग्रामीणो की दशा सुधारने के लिए सरकार द्वारा कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से प्रयास तो किये जा रहे है परन्तु वह परिणाम सामने नही आ पा रहा है जो आना चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि हम […]
बुद्घि से ही उपजताजीवन में सदा ज्ञान।गर बुद्घि में अहं हो,तो ज्ञान बनै अज्ञान ।। 948।। व्याख्या :-संसार में आज जितना भी बहुमुखी और बहुआयामी विकास दृष्टि गोचर हो रहा है, इसके मूल में मनुष्य की बुद्घि है। यह बुद्घि मनुष्य को परमपिता परमात्मा का अनुपम उपहार है। ज्ञान सर्वदा बुद्घि में ही उपजता है […]
जीवन जटिल आयु सीमित है, इसका भी कर ध्यान तू।यथा शक्ति नित करता चल, इस सृष्टि का त्राण तू। विकास और शांति को बना ले, इस जीवन का ध्येय।ईश्वर का प्रतिनिधि होने का, तभी मिलेगा श्रेय। ईष्र्या प्रतिशोध की अग्नि, कर शांत क्षमा के नीर से।भोग में नही, त्याग में सुख है, बच हिंसा के […]
बिखरे मोती-भाग 93 गतांक से आगे…. वह ऐसे निष्प्राण हो जाता है जैसे पानी के बिना पौधा सूख जाता है। याद रखो, संबंधों का ताना-बाना सदभाव के जल पर चलता है। ठीक उसी प्रकार जैसे नदी के जल पर नाव चलती है। यदि नदी का जल सूख जाए तो नाव नही चल सकती है। […]
यज्ञ अपने आप में एक व्यवस्था का नाम है। किसी याज्ञिक परिवार में यज्ञ करते समय जितनी सुंदर व्यवस्था से या अव्यवस्था से लोग बैठे हों, उसे देखकर ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ये लोग परिवार में कैसी व्यवस्था को लागू करके रहते हैं। ‘सूय्र्याचन्द्रमसाविव’ का आदर्श यदि किसी परिवार ने अपना लिया […]