भारत के राष्ट्रनायकों और इतिहास पुरूषों के साथ जो अन्याय हमारे इतिहासकारों और आज तक के दुर्बल नेतृत्व ने किया है, संभवत: उसी के विषय किसी कवि ने कितना सुंदर कहा है- ”धरती की सुलगती छाती के बेचैन शरारे पूछते हैं, जो लोग तुम्हें दिखला न सके, वो खून के धारे पूछते हैं अंबर की […]
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जीवित रहने के लिए हम ही सबसे योग्य थे वीर सावरकर ने एक लेख में लिखा था-”हिंदुओं! अपना राष्ट्र गत दो हजार ऐतिहासिक वर्षों तक जो जीवित रह सका, ऐसा जो कहते हैं वे मूर्ख तथा लुच्चे हैं। हम जीवित रहे क्योंकि जीवित रहने के लिए हम ही सबसे योग्य थे। उन परिस्थितियों से जूझने […]