राजकुमार आर्य दादरी। जब देश आलस और प्रमाद की झपकी लेने लगता है, निराशा निशा चहुं ओर झलकने लगती है, जब देश की फिज़ाओं में चारों ओर एक मौन आह्वान गूंजने लगता है तब कवि आशा की एक किरण बनकर मैदान में आता है और अपनी लेखनी की पैनी धार से निराशा के सारे बादलों […]