मनुष्य का जीवन व चरित्र उज्जवल होना चाहिये परन्तु आज ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है। जो जितना बड़ा होता है वह अधिक संदिग्ध चरित्र व जीवन वाला होता है। धर्म हो या राजनीति, व्यापार व अन्य कारोबार, शिक्षित व अशिक्षित सर्वत्र चरित्र में गड़बड़ होने का सन्देह बना रहता है। ऐसा होना नहीं […]
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राजगृह का बौद्ध बिहार उन दिनों तरुणी परिव्राजिका कुंडलकेशा के पांडित्य और सारिपुत्र की उत्कृष्ट योग-साधना की चर्चा का केंद्र बना हुआ था। रोज हजारों जिज्ञासु आते और कुंडलकेशा से समाधान प्राप्त करते जबकि सारिपुत्र आत्म-शोध के लिए नितांत एकाकी जीवन-यापन को ही महत्व दे रहे थे। उनका एकाकीपन भंग किया कुंडलकेशा ने। एक ओर […]