विनोद कुमार बाजारवादी व्यवस्था अपने हिसाब से किसानों को फसल उगाने के लिए कहती है। उसके लिए तरह-तरह के प्रलोभन और कर्ज देती है, और किसान उनके झांसे में आ जाते हैं। फिर उनके हाथों में खेलने लगते हैं। उपज की कीमत भी बाजार तय करता है। फिर शुरू होती है सरकारी हस्तक्षेप की मांग। […]