गुरूदेव का व्यक्तित्व गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर का व्यक्तित्व पूरी कांग्रेस से ऊपर था। क्योंकि कांग्रेस ने अपनी ‘राजभक्ति’ का व्यामोह 1929-30 में जाकर त्यागा, जब उसने भारत की पूर्ण स्वाधीनता प्राप्ति का संकल्प व्यक्त किया। इतनी देर से (1885 से 1930 तक) कांग्रेस ने आंखें खोलना उचित नही समझा। उसने 1920-21 का असहयोग आंदोलन […]
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क्रांतिकारियों को नही थी पसंद चाटुकारिता देश के क्रांतिकारी आंदोलन की विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोगों ने ‘जन-गण-मन अधिनायक जय हे’ के गीत को लेकर गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की आलोचना करनी आरंभ कर दी थी। इसका कारण केवल यह था कि हमारे स्वातंत्र्य समर की क्रांतिकारी विचारधारा के लोगों के लिए ‘अधिनायक’ जैसा शब्द […]
कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन के अध्यक्षीय भाषण का अंत डब्ल्यू.सी. बनर्जी ने इस शब्दों में किया था-”अंग्रेजी राज की कृपापूर्ण घनी छांह में देश को अनेकानेक लाभ प्राप्त हुए।” अधिवेशन का प्रारंभ भी इसी प्रार्थना से हुआ था कि ब्रिटेन की महारानी दीर्घायु हों और स्वस्थ हों। कांग्रेस के द्वितीय अध्यक्ष दादा भाई नौरोजी ने […]
कल्याणसिंह ने ‘अधिनायक’ शब्द को हटाने की बात कहकर अपने आपको यहीं तक सीमित रखा है कि वह राष्ट्रगान में ‘अधिनायक’ शब्द को साम्राज्यवाद का प्रतीक मानते हैं। परंतु लेखक श्री सिंह को आगे तक घसीट कर ले गया। जैसे कि श्री सिंह ने बहुत बड़ा अपराध कर दिया है और आर.एस.एस. जैसे हिंदूवादी संगठन […]
एक दैनिक समाचार पत्र में एक लेख ‘राज्यपाल, राष्ट्रगान और कॉमन सेन्स’ के शीर्षक से प्रकाशित हुआ। विगत 13 जुलाई 2015 को प्रकाशित हुए इस लेख के लेखक पंकज श्रीवास्तव हैं। आलेख में लेखक ने पिछले दिनों राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह द्वारा राष्ट्रगान से ‘अधिनायक’ शब्द को हटाने संबंधी टिप्पणी की, यह कहकर […]