बहुत हो चुका, खूब भटकते रहे हैं हम, हर बार रोशनी का दरिया उमड़ाते रहते हैं फिर भी जाने क्यों ये अंधेरा पसरने लगता है हमारे भीतर, आस-पास, और दूरदराज तक। जिधर नज़र दौड़ाएं अंधेरों का कोई न कोई कतरा किसी न किसी परछाई के साथ उभर कर सामने आता-जाता रहता है। कभी डरावना लगता […]
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