इंसान की फितरत होती है कि वह जिस माहौल में पला-बढ़ा और रचा-बसा होता है उसी के आभामण्डल के साथ जीता हुआ हर क्षण उसी में इतना रमा होता है कि उसे दूसरे सारे लोग भी अपनी ही तरह नज़र आते हैं। उसके भीतर गहरे तक इन भावों का जमावड़ा बना रहता है कि वह […]
इंसान की फितरत होती है कि वह जिस माहौल में पला-बढ़ा और रचा-बसा होता है उसी के आभामण्डल के साथ जीता हुआ हर क्षण उसी में इतना रमा होता है कि उसे दूसरे सारे लोग भी अपनी ही तरह नज़र आते हैं। उसके भीतर गहरे तक इन भावों का जमावड़ा बना रहता है कि वह […]