आज से लगभग 140 वर्ष पूर्व हमारा समाज अज्ञान व अन्धकार से आवृत्त तथा रूढि़वादी परम्पराओं में जकड़ा हुआ था। सामाजिक विषमता अपने जटिलतम रूप में व्याप्त थी। ऐसे समय में महर्षि दयानन्द ने वेद एवं वैदिक साहित्य से समाज सुधार के क्रान्तिकारी विचारों व मान्यताओं को प्रस्तुत किया था। यह भी तथ्य है कि […]