साबरमती के संत का कमाल यही है कि उसकी नीतियों के सहारे लोग आज देश पर शासन करने में सफल हो रहे हैं। यह वास्तव में जनता की भावनाओं से किया गया खिलवाड़ है, जो हर बार और हर स्तर के चुनाव में किया जाता है। केवल भारत ही एक ऐसा देश है-जिसमें चुनाव को […]
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चाहे ब्रिटिश सत्ताधीशों ने भारत के विक्षोभ और विद्रोह की हवा निकालने के लिए कांग्रेस जैसा संगठन भी खड़ा कर लिया था, परंतु भारतीयों का विक्षोभ और विद्रोह था कि शांत होने का नाम नही लेता था। अपने महान क्रांतिकारियों के महान कृत्यों का अवलोकन करने से और उनके विषय में पढऩे से ही स्पष्ट […]
प्रमोद भार्गव पाश्चात्य इतिहास लेखकों की स्वार्थपरक और कूटनीतिक विचारधारा से कदमताल मिलाकर चलने वाले कुछ भारतीय इतिहास लेखकों के चलते आज भी इतिहास की कुछ पुस्तकों और ज्यादातर पाठ्य-पुस्तकों में यह मान्यता चली आ रही है कि 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अंग्रेजी मान्यता के खिलाफ बर्बरतापूर्ण संघर्ष था। यह संग्राम तत्कालीन ब्रितानी हुकूमत […]
वास्तव में हम 1400 ई. से 1526 ई. तक (जब तक कि बाबर न आ गया था) के काल में उत्तर भारत में अपने-अपने साम्राज्य विस्तार के लिए विभिन्न शक्तियों के मध्य हो रहे संघर्ष की स्थिति देखते हैं। इसी संघर्ष की स्थिति से गुजरात, मालवा और मेवाड़ निकल रहे थे। ये एक दूसरे से आगे निकलने और एक दूसरे […]
एक का उठना एक का गिरनाये खेल निरंतर चलता है।नीति पथ के अनुयायी को जग में मिलती सच्ची सफलता है।।पथ अनीति का अपनाये जो,वह कागज के सम गलता है।कालचक्र जब घूमकर आये,तब चलती नही चपलता है।।अलाउद्दीन खिलजी ने निश्चित रूप से दिल्ली की सल्तनत को विस्तार दिया था। पर उसने दिल्ली सल्तनत को फैलाने में […]
गयासुद्दीन बलबन गुलाम वंश का सबसे प्रमुख सुल्तान था। नासिरूद्दीन के शासन काल में वह मुख्य सेनापति था और तब उसकी शक्ति में पर्याप्त वृद्घि हो गयी थी। बदायूंनी का कथन तो यह भी है कि सुल्तान नासिरूद्दीन ने राज्यसिंहासन पर बैठते ही उलुघ खां की उपाधि बलबन को दी थी और इस उपाधि को […]
दिल्ली ने भारत के उत्थान-पतन के कई पृष्ठों को खुलते और बंद होते देखा है। कई राजवंशों ने यहां लंबे समय तक शासन किया, पर समय वह भी आया कि जब उनका इतिहास सिमट गया और उनके सिमटते इतिहास केे काल में ही किसी दूसरे राजवंश ने दिल्ली की धरती पर आकर अपने वैभवपूर्ण उत्थान […]