महर्षि व्यास लिखते हैं – जात्या च सदृशा सर्वे कुलेन सदृशास्तथा। न चोद्योगे न बुद्घया वा रूपद्रव्येण वा पुन:। भेदोच्चैव प्रदानच्च भिद्यन्ते भिद्यन्ते निपुभिर्गणा।। (महा. शा. 107. – 30, 31) अर्थात जाति और कुल में सभी एक समान हो सकते हैं, परंतु उद्योग, बुद्घि, रूप, तथा सम्पत्ति में सबका एक सा होना संभव नही है। […]
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अमेरिकन सरकारी संस्था के प्रतिवेदन अनुसार , अमेरिका मे 41 प्रतिशत लोग केन्सर का भोग बने है । अर्थात दो पुरुष मे से एक पुरुष केनसर पीडि़त एवं तीन महिला मे से एक महिला । इस संस्था ने खाद्य पदार्थो मे हो रहे असीमित रसायणों के उपयोग को दोषी माना है । कुछ रसायण ऐसे […]