ऐसी परिस्थितियों में उन अनेकों ‘फाहियानों,’ ‘हुवेनसांगों’ व ‘मैगास्थनीजों’ का गुणगान करना हम भूल गये जो यहां सृष्टि प्रारंभ से अपनी ज्ञान की प्यास बुझाने के लिए आते रहे थे और जिन्होंने इस स्वर्गसम देश के लिए अपने संस्मरणों में बारम्बार यह लिखा कि मेरा अगला जन्म भारत की पवित्रभूमि पर होना चाहिए। जिससे कि […]
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भारत की इस प्रवाहमानता के कारण भारत के चिंतन में कहीं कोई संकीर्णता नहीं है, कही कोई कुण्ठा नहीं है, कहीं किसी के अधिकार को छीनने की तुच्छ भावना नहीं है, और कहीं किसी प्रकार का कोई अंतर्विरोध नहीं है। सब कुछ सरल है, सहज है और निर्मल है। उसमें वाद है, संवाद है-विवाद नहीं […]
यदि कोई मुझसे ये पूछे कि भारत के पास ऐसा क्या है-जो उसे संसार के समस्त देशों से अलग करता है?-तो मेरा उत्तर होगा-उसका गौरवपूर्ण अतीत का वह कालखण्ड जब वह संसार के शेष देशों का सिरमौर था अर्थात ‘विश्वगुरू’ था। जब मेरे से कोई ये पूछे कि भारत के पास ऐसा क्या है-जिससे वह […]
हिमाचल राजभवन में राष्ट्रनीति की गूंजहमारा मानना है कि भारत को ‘विश्वगुरू’ बनाने का हमारा संवैधानिक लक्ष्य तभी पूर्ण हो सकता है जबकि हमारे राजभवनों में तपे हुए संत प्रकृति के और दार्शनिक बुद्घि के राजनेता विराजमान होंगे। राजभवनों में यदि निकृष्ट चिंतन के लोगों को भेजा जाएगा तो उनसे भारतीयता का भला होने वाला […]
एस. सी. जैन अब हम देखें कि मनू द्वारा तैयार की गयी स्मृति और अंग्रेजों द्वारा तैयार की गयी स्मृति में जमीन आसमान का अंतर है। अंग्रेज द्वारा हमारे ग्रंथों व साहित्य में से कुछ वाक्य को निकाल कर रिकॉर्ड कर दिया जाता है कि भारत वासी गाय का मांस खाते हैं। यह सब बाहर […]
भारत के विषय में मि. कोलमैन ने कहा है कि भारत के साधु संतों एवं कवियों ने नैतिक नियमों की शिक्षा दी, और इतने सुंदर कवित्व का प्रदर्शन किया, जिसकी श्रेष्ठता स्वीकार करने में विश्व के किसी भी देश, प्राचीन अथवा अर्वाचीन को लेशमात्र भी झिझक नही होती। भारत के गर्वनर जनरल रहे वारेल हेस्टिंग्स […]