शीतयुद्घ का काल यूरोप उस समय विश्व राजनीति का केन्द्र बिन्दु था। इसके सारे राष्ट्रों की पारस्परिक ईष्र्या, द्वेष, डाह और घृणा की भावना ने विश्व को दो महायुद्घों में धकेल दिया था। द्वितीय विश्वयुद्घ के पश्चात भी इनकी ये बातें समाप्त नही हुईं, इसलिए संसार ‘शीतयुद्घ’ के दौर में प्रविष्ट हो गया। उसने आग […]
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जलता हुआ प्रश्न एक ही, दिल्ली किसको बोल रही? रक्त चूसते भ्रष्टाचारी उनका घूंघट खोल रही। सपनों का महल जलाना राजनीति का व्यवसाय बना, कब तक इनसे जूझूंगी मैं? दिल्ली की माटी बोल रही। वास्तव में दिल्ली आज अपने आप पर लज्जित है। सवा दो वर्ष पूर्व दिल्ली ने जिन अपेक्षाओं के साथ अपनी शासन […]
राजनीति के व्यापार में अपना भाग्य आजमाने के लिए लोग तिजोरी का मुंह खोले रखते हैं। अपने विरोधी को मैदान से हटाने के लिए या अपने लिए मैदान साफ रखने के लिए राजनीतिक लोग हर प्रकार का हथकंडा अपनाते हैं। अभी दिल्ली में एम.सी.डी. के संपन्न हुए चुनावों में भाजपा की एक बागी प्रत्याशी को […]
ऐसा कब होता है? जब कत्र्तव्य बोध से लेाग च्युत हो जाते हैं और जब राष्ट्रबोध से लोग विमुख हो जाते हैं, तब ‘कमीशन’ और ‘पैसा’ कर्तव्य बोध और राष्ट्रबोध को भी लील जाता है। आज हमें यही ‘कमीशन’ और पैसा हमें लील रहा है। प्राकृतिक प्रकोप हमारी अपनी बदलती प्रकृति और प्रवृत्ति के परिणाम […]
राहुल गांधी के प्रति हमारी सहानुभूति है। वह एक सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के सबसे अधिक अनुभवहीन नेता है। उन्होंने राजनीति में अपना पर्दापण अपनी ही पार्टी के प्रधानमंत्री के एक विधेयक के कागजों को सार्वजनिक रूप से फाडक़र अपनी जग हंसाई करते हुए किया था। तब देश के लोग ही नहीं अपितु कांग्रेसी भी […]
गांधीजी के नैतिक मूल्यों ने इन समस्याओं को और उलझा दिया। आज परिणाम हम देख रहे हैं कि मानव-मानव से जुड़ा नहीं है, अपितु पृथक हुआ है। आज मानव दानव बन गया है। संप्रदाय आदि के झगड़े राष्ट्र में शैतान की आंत की भांति बढ़े हैं। क्योंकि हमने मजहब संप्रदाय, वर्ग, पंथ, भाषा, जाति आदि […]
डा. रवि प्रभात राजनीति करना और राजनीति को समझना दो अलग-अलग बातें हैं। भारतीय राजनीति में इन दोनों विधाओं में सामंजस्य रखने वाले अनेक नेता हुए हैं , जिन्होंने राजनीति करते हुए राजनीति को अच्छे से समझा, तदनुसार रणनीति बनाई और सफलता प्राप्त की ।इंदिरा गांधी, जयप्रकाश नारायण पर अटल बिहारी वाजपेई इस सामंजस्य को […]
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के चलते राजनीतिज्ञों की ओर से मतदाताओं को लुभाने हेतु कई प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया गया है। बेचारेे सीधे-सीधे तो संप्रदाय या जाति के आधार पर वोट मांग नहीं सकते। अत: घुमा-फिराकर अपनी बात को कहने के लिए शब्दों को ढूंढऩे का प्रयास हमारे राजनीतिज्ञ करते दिखाई दिये […]
तुलसीदास के राम कहते हैं… तुलसीदास जी ने रामचंद्र जी के मुख से ‘परशुराम-राम संवाद’ के समय कहलवाया है :- छत्रिय तनु धरि समर सकाना, कुल कलंकु तेहिं पावर आना, कहऊं सुभाऊ न कुलहि प्रसंसी, क ालहु डरहिं न रन रघुबंसी अर्थात क्षत्रिय का शरीर धरकर जो युद्घ में डर गया, उस नीच ने अपने […]
सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावों में धर्म, जाति, सम्प्रदाय या वर्ग विशेष के नाम पर वोट मांगने को या वोट देने के लिये प्रेरित करने को भ्रष्ट प्रक्रिया करार देकर भारतीय लोकतंत्र में पहली सबसे खतरनाक बीमारी को दूर करने का प्रयास किया है। बावजूद इसके दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने बहुजन […]