संजय द्विवेदी अब जबकि भोपाल में विश्व हिंदी सम्मेलन सितंबर महीने में होने जा रहा तो एक बार यह विचार जरूर होना चाहिए कि आखिर हिंदी के विकास की समस्याएं क्या हैं? वे कौन से लोग और तत्व हैं जो हिंदी की विकास बाधा हैं? सही मायनों में हिंदी के मान-अपमान का संकट राजनीतिक ज्यादा […]
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विश्वात्मा भाषा : संस्कृत
भारत जब-जब भी भारतीयता की और भारत केे आत्म गौरव को चिन्हित करने वाले प्रतिमानों की कहीं से आवाज उठती है, तो भारतीयता और भारत के आत्मगौरव के विरोधी लोगों को अनावश्यक ही उदरशूल की व्याधि घेर लेती है। अब मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी ने कहीं संस्कृत के लिए कुछ करना चाहा […]
गतांक से आगे……… यहां हम थोड़ा सा उसका इतिहास देकर उसके विषय प्रतिपादन की ओर आना चाहते हैं। तिलक महोदय ने ‘ओरायन मृगशीर्ष’ ग्रंथ लिखने के पांच वर्ष बाद सन 1898 में उत्तरधु्रव निवास लिखा और उसका सारांश एक पत्र द्वारा मैक्समूलर के पास भेजा। पत्र के उत्तर में मैक्समूलर ने लिखा कि कितने ही […]
गतांक से आगे…. इन्हीं दोनों को ऋग्वेद 10 /14/11 में यौ ते श्वानौ यम रक्षितारौ चतुरक्षौ पथिरक्षी कहा गया है। ये श्वान सदैव द्विवचन में कहे गये हैं, जिससे ज्ञात होता है कि वे दो हैं। पर तिलक महोदय श्वान के विषय के जो चार प्रमाण देते हैं, उनमें सर्वत्र एक ही वचनवाला श्वान कहा […]
स्वयं को छलती, देश को ठगती कांग्रेस
दिनेश परमारभारतीय राजनीति में जिस प्रकार की विकृति व विसंगति वर्तमान समय में उभर रही है वह ठिक तो कदापि नहीं, अव्यवहारिक व देश के लिए घातक भी है। राष्ट्रीय राजनीति के मुद्दों से लेकर पंचायत स्तर के चुनावों तक में उम्मीदवारों द्वारा कितनी बेतुकी व बेसिर-पैर की बयानबाजी की जाती है निकट समय के […]
गतांक से आगे…..बस, आकाशस्थ ऋषियों का इतना ही वर्णन करना है। इसके आगे अब यह दिखलाना है कि शरीरस्थ इंद्रियों को भी ऋषि कहा गया है। यजुर्वेद में लिखा है कि-सप्तऋषय: प्रतिहिता: शरीरे सत्प रक्षन्ति सदमप्रमादम।सप्ताप: स्वपतो लोकमीयुस्तत्र जागृतो अस्वप्नजौ सत्रसदौ च देवौ।अर्थात शरीर में सात ऋषियों का वास है उनके सोने पर भी दो […]
विदेश नीति में भारतीय भाषा
-डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री जिन दिनों दूरदर्शन का प्रचलन नहीं था उन दिनों अख़बार में ख़बर छपती तो थी लेकिन ख़बर बनती कैसे है यह पता नहीं चलता था । लेकिन जब से दूरदर्शन का प्रचलन बढ़ा है तब से आँखों के आगे ख़बर बनती […]
गतांक से आगे…..इसको स्वर्ग ऊपर भेजने वाले विश्वामित्र ही थे। इसलिए इस त्रिशंकु के नीचे ही, दक्षिण में विश्वामित्र नामी नक्षत्र होना चाहिए। क्योंकि उत्तर स्थित वशिष्ठ और दक्षिण स्थित विश्वामित्र के दिशाविरोध से ही वशिष्ठ और विश्वामित्र का विरोधालंकार प्रसिद्घ हुआ है। इन कौशिक अर्थात विश्वामित्र का वर्णन वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 80 में […]