पांच प्रतिशत बनाम पिचानवें प्रतिशत का अनुपात हुआ करता है। किंतु इसके उपरांत भी पिचानवें प्रतिशत लोगों को रास्ता दिखाने और बताने का कार्य ये पांच प्रतिशत लोग ही किया करते हैं। कहने का अभिप्राय है कि जमाना पिचानवें प्रतिशत लोगों से बनता है, किंतु जमाने को सही दिशा या रास्ता सिर्फ पांच प्रतिशत लोग […]
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आज हमें देश के सामने खड़ी चुनौतियों के नये -नये स्वरूपों पर चिंतन करना है। प्रमादी, आलसी, निष्क्रिय होकर किसी ‘अवतार’ की प्रतीक्षा में नहीं बैठना है, अपितु क्रियात्मक रूप में कार्य करना है। क्रियात्मक रूप में जिसका वर्तमान सो जाता है, उसका भविष्य उजड़ जाया करता है। इसलिए हमें सोना नहीं है। हमें कर्मठता […]
महर्षि व्यास लिखते हैं – जात्या च सदृशा सर्वे कुलेन सदृशास्तथा। न चोद्योगे न बुद्घया वा रूपद्रव्येण वा पुन:। भेदोच्चैव प्रदानच्च भिद्यन्ते भिद्यन्ते निपुभिर्गणा।। (महा. शा. 107. – 30, 31) अर्थात जाति और कुल में सभी एक समान हो सकते हैं, परंतु उद्योग, बुद्घि, रूप, तथा सम्पत्ति में सबका एक सा होना संभव नही है। […]
भारत देश का संवैधानिक नाम भारत संघ (इंडियन यूनियन) है। इसका कारण यह बताया जाता है कि भारत विभिन्न राज्यों का एक संघ है। यद्यपि इन राज्यों की संवैधानिक स्थिति कभी के सोवियत संघ के राज्यों की स्थिति के सर्वथा भिन्न है। इसके अतिरिक्त ये राज्य किसी भी स्थिति परिस्थिति में ‘राष्ट्र राज्य’ नही हो […]
अकर्मण्यता हमारा लक्ष्य न हो प्रकृति अपना कार्य कर रही है, इतिहास अपना कार्य कर रहा है। कालचक्र अपनी गति से घूम रहा है। तीनों बातें भारत के पक्ष में हैं। किंतु इसका अभिप्राय यह कदापि नहीं है कि हम हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाएं या अकर्मण्यता को गले लगाकर अपने दुर्भाग्य की पटकथा […]
विश्व में ईसाइयत और इस्लाम के मध्य उभरता अंतद्र्वन्द हमारा ध्यान इन जातियों के पतन की ओर दिलाता है। इतिहास ने ‘ओसामा बिन लादेन’ और ‘जार्ज डब्ल्यू बुश’ को पतन के मुखौटे के रूप में तैयार कर दिया है। इनके पश्चात इनके उत्तराधिकारी आते रहेंगे और पतन की दलदल में ये और भी धंसते चले […]
विश्व में भारतवर्ष एक ऐसा देश है, जिसके धर्म, संस्कृति और इतिहास सर्वाधिक प्राचीन हैं। इस दृष्टिकोण से भारतवर्ष का धर्म वैश्विक धर्म है, भारत की संस्कृति वैश्विक संस्कृति है और भारत का इतिहास (यदि वास्तव में खोजकर तथ्यपूर्ण ढंग से लिखा जाए तो) विश्व का इतिहास है। विश्व के ऐतिहासिक नगरों, देशों की राजधानियां […]
भारत का ‘अन्नदाता’ इस समय आत्महत्या कर रहा है। जैसे-जैसे यह घटनाएं बढ़ती हैं, वैसे-वैसे ही विपक्षी पार्टियां चिल्लाती हैं कि सरकार किसानों के लिए कुछ नहीं कर रही है, और यह सरकार किसान विरोधी है। विपक्ष की इस चिल्लाहट के बीच सरकारें किसानों के कर्ज माफ कर रही हैं। पर देखा जा रहा है […]
इस विषय में मुझे राष्ट कवि ‘श्री त्रिपाठी कैलाश आजाद’ (सांगली) महाराष्ट निवासी की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं, जो यहां इस विषय में बिल्कुल सत्य साबित होती हैं, यथा- एक दूसरे के लिए, रहें कृतज्ञ हम। प्रत्येक परिस्थिति में, रहें स्थितप्रज्ञ हम।। वेदों का सार ‘इदन्नमम्’ का भाव ले। सर्वोदय की भावना से, […]
पर्यावरण नियंत्रक सांस्कृतिक प्रकोष्ठ’ में कार्यरत व्यक्तियों के लिए आवश्यक हो कि वे संस्कृत के जानने वाले तो हों ही, साथ यज्ञ विज्ञान की गहराइयों को भी सूक्ष्मता से जानते हों। कौन सी सामग्री किस मौसम में और किस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त करने में हमें सहायता दे सकती है-इस बात को ये लोग […]