बिखरे मोती-भाग 82 गतांक से आगे….राग रहित को होत है,ब्रह्मवित का अहसास।जैसे मिटते ही तिमिर के,प्रकट होय प्रकाश ।। 856 ।। ब्रह्मवित-ब्रह्म को जानने वाला उसमें अभिन्न भाव से स्थित होने वाला किंतु इस अवस्था को प्राप्त होकर भी अभिमान न करने वाला, सदा सौम्य बना रहने वाला।व्याख्या : संसार से राग मिटते ही ब्रह्म […]