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विशेष संपादकीय

धरती को जीने लायक कैसे बनाएं

भारतीय संस्कृति के उद्भट्ट प्रस्तोता के रूप में ख्याति प्राप्त पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डा. एपीजे अब्दुल कलाम के अंतिम शब्द थे-‘धरती को जीने लायक कैसे बनाएं?’ कलाम साहब के इस प्रश्न का उत्तर स्वयं उनका अपना जीवन है, मनुष्य स्वयं को उनके जैसा बना ले तो यह धरती जीने लायक अपने आप हो जाएगी। […]

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अन्य कविता

घायल धरती की पुकार

परमाणु परीक्षण करता जब, उसकी छाती फट जाती है।भूकंप जिसे तुम कहते हो, वो धरती के दिल की धडक़न।कहती किया घायल मानव ने, सुन स्रष्टा तू मेरी तडफ़न। मेरा दिल आहत कर डाला, इस मानव नाम के प्राणी ने।आखिर मैं कब तक मूक रहूं, सुन मेरी व्यथा की वाणी ने। सृष्टि तो मेरा कलेवर है, […]

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