महात्मा की अपेक्षाएं महात्मा तो वह होता है जिसकी आत्मा संसार के महत्व को समझकर विषमताओं, प्रतिकूलताओं और आवेश के क्षणों में भी जनसाधारण के प्रति असमानता का व्यवहार न करते हुए समभाव का ही प्रदर्शन करती है, किंतु जिसका व्यवहार हठीला हो, दुराग्रही हो, सच को सच न कह सकता हो, इसलिए एक पक्ष […]
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देह, आत्मा, जगत की, कभी एकता न होय
बिखरे मोती-भाग 88 कृपा जीवन बदल देती है, रंक को राजा बना देती है। दिखने में कृपा मामूली लगती है किंतु गुणकारी और प्रभावशाली इतनी होती है कि जिंदगी का कायाकल्प कर देती है। देखने में तो लाइटर की चिंगारी भी बड़ी सूक्ष्म होती है, किंतु जब वह चूल्हे की अग्नि बनकर जलती है तो […]
-अशोक “प्रवृद्ध” मानव शरीर में एक अंग है मन। यह स्मृत्ति यन्त्र होने के साथ ही कल्पना और मनन का भी स्थान है। ये कल्पना और मनन मन की स्मरण शक्ति के ही कारण हैं। ईश्वर प्रदत्त मन पर नियन्त्रण रखने वाला एक यन्त्र बुद्धि मन के संकल्प-विकल्प को नियन्त्रण में रखने का कार्य करती […]
बिखरे मोती-भाग 9८ गतांक से आगे….कर्म करे जैसे मनुष्य,मन भुगतै परिणाम।प्रकृति-पुरूष निरपेक्ष हैं,मत कर उल्टे काम।। 929।। व्याख्या :-प्राय: लोग यह प्रश्न करते हैं कि कर्म देह का विषय है अथवा आत्मा का? इस प्रश्न का सीधा सा उत्तर हमारे ऋषियों ने वेद, उपनिषद और गीता में इस प्रकार दिया है-कर्म न तो देह का […]