इन उपदेशों को अश्लील न समझना चाहिये । आगे इसी विवाहप्रकरण में गर्भाधानसंस्कार के लिए देता है कि- आ रोह तल्पं सुमनस्यमानेह प्रजां जनय पत्ये अस्मै। इन्द्राणीव सुबुधा बुध्यमाना ज्योतिरगरा उषसः प्रति जागरासि । (अथर्व० 14/2/31) देवा अग्रे न्यपद्यन्त पत्नी: समस्पृशन्त तन्वस्तनूभिः । सूर्येव नारि विश्वरूपा महित्वा प्रजावती पत्या सं भवेद् ॥ (अथर्व ० 14/2/32) […]
वैदिक सम्पत्ति गतांक से आगे…
