प्रीतिः मंजरीषु इव वसंत आया है। वैसे ही आया है, जैसे प्रतिवर्ष आता है – प्रत्येक हृदय को सुमन सम प्रफुल्लित करता हुआ, आशाओं को पत्र इव पल्लवित करता हुआ! मन मधुप हुये जा रहे हैं तथा सुधियों की अमराइयों में कोकिलों की तान उठ रही है। जिनकी काया निरी ठूँठ होकर रह गयी थी, […]
प्रीतिः मंजरीषु इव
