(विवेकआर्य) जलियांवाला बाग घटना। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अंग्रेज डायर द्वारा निहत्थे भारतीयों के खून से लिखी ऐसी दर्दनाक इतिहास की घटना है। जिसके इस वर्ष 100 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं। पंजाब सहित देशभर में रौलेट एक्ट रूपी काला कानून देशवासियों को प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का सहयोग करने के […]
Month: December 2022
भूमिका आर्यावर्त कालीन आर्य राजाओं की यह विशेषता रही कि वे भारतवर्ष की केंद्रीय सत्ता के प्रति सदैव निष्ठावान रहे । सुदूर प्रांतों में अलग स्वतंत्र राज्य होने के उपरांत भी केंद्र की सत्ता के प्रति वे अपनी आस्था को वैसे ही बनाए रहे जैसे एक पुत्र अपने पिता के प्रति निष्ठावान बना रहता है […]
हमारा व्यवहार कैसा हो ?
हम अपने तीनों साधनों (मन, वाणी और शरीर) के माध्यम से ही कुछ क्रिया-व्यवहार करने में समर्थ हो पाते हैं। अर्थात् मानसिक, वाचनिक और शारीरिक रूप में हमारा व्यवहार का क्षेत्र पृथक-पृथक रहता है। हम अपने व्यवहार को पाँच भागों में बाँट सकते हैं जैसे कि व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, और वैश्विक। जो भी हमारे […]
भारत में ध्येयनिष्ठ लेखन की सुदीर्घ परम्परा रही है। इस परम्परा के वाहकों ने जीविकोपार्जन या बुद्धिविलास के लिए लेखन नहीं किया, अपितु वैचारिक आन्दोलन, देश-समाज के जागरण और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए उन्होंने कलम चलाई। भारतीय इतिहास में ऐसे ही एक महानायक हुए भाई परमानन्द। भाई परमानंद को जानने वाले उन्हें देवतातुल्य मानते हैं। […]
भारत के दो राज्यों गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश और एक नगर निगम दिल्ली के चुनावों में इन क्षेत्रों के मतदाताओं ने जो जनादेश दिया है उससे एक बार फिर सिद्ध हो गया है कि भारत में लोकतंत्र कायम है और इसकी जीवंतता के लिये मतदाता जागरूक है। मतदाता को ठगना या लुभाना अब नुकसान का […]
गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा ने प्रचंड जीत हासिल कर 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अपना दावा तो मजबूत किया ही है साथ ही यह भी साबित किया है कि किसी भी अन्य पार्टी के पास ब्रांड मोदी का कोई विकल्प नहीं है। इन चुनावों ने यह भी दर्शाया कि प्रधानमंत्री मोदी जैसी मेहनत […]
गुजरात, दिल्ली और हिमाचल के चुनाव परिणामों का सबक क्या है? दिल्ली और हिमाचल में भाजपा हार गयी और गुजरात में उसकी एतिहासिक विजय हुई है। हमारी इस चुनाव-चर्चा के केंद्र में तीन पार्टियाँ हैं- भाजपा, कांग्रेस और आप! इन तीनों पार्टियों के हाथ एक-एक प्रांत लग गया है। दिल्ली का चुनाव तो स्थानीय था […]
द्रोणाचार्य बनाम अम्बेडकर
हमारे कुछ दलित भाई एकलव्य के अँगूठे को लेकर बड़े आक्रोशित रहते हैं। उनका कहना है कि द्रोणाचार्य ने जातिवाद का समर्थन करते हुए अर्जुन से अधिक पात्र एकलव्य का अँगूठा इसलिए कटवा दिया क्योंकि अर्जुन उन्हें अधिक प्रिय था। वैसे तो मैं इस घटना को प्रक्षिप्त अर्थात मिलावटी मानता हूँ क्योंकि बिना सिखाये कोई […]
इतिहास का भूत और संसार की दुर्दशा जिन लोगों ने अपने धर्म स्थल या मठ या मजार आदि स्थापित करके पापी, डाकू लोगों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों व अधिकारियों से उनके लिए धन लेकर उन्हें यह आश्वासन देने का पाप किया है कि इससे उनके पाप क्षमा हो गए हैं,वे सभी वर्तमान संसार की दुर्दशा के […]
एक हिन्दू (आर्य) धर्म की रक्षा के लिए शुद्धिस्वामी दयानन्द सरस्वती की सर्वथा नवीन, मौलिक और क्रान्तिकारी देन थी। इसके प्रादुर्भाव का इतिहास अतीव रोचक है और इस बात को स्पष्ट करता है कि स्वामी जी अपने समय की परिस्थितियों को देखते हुए किस प्रकार मौलिक चिन्तन करते थे और तत्कालीन सामाजिक समस्याओं के समाधान […]